Soviyat Sangh ka Vighatan kab hua

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Soviyat Sangh ka Vighatan kab hua

सोवियत संघ

आपको बता दें की सोवियत संघ का एक अन्य नाम समाजवादी गणतंत्रों का संघ था । यह सन 1922 से 1991 ईस्वी तक यूरेशिया के एक बहुत बड़े भाग पर विस्तारित देश था । 1990 ईस्वी तक देखा जाए तो यहाँ पर कम्युनिष्ट पार्टी का वरचॅस्व था । आपको बताते चलें की इसका कुल विस्तार 22402200 वर्ग किलोमीटर में था जो दुनिया का सबसे बड़ा देश था ।

सोवियत संघ मुख्य रूप से 15 स्वशासित गणतंत्रों का संघ था लेकिन सबसे बड़ी बात है की पूरे देश के अर्थव्यवस्था और प्रशासन पर केन्द्रीय सरकार का नियंत्रण था  । Soviyat Sangh ka Vighatan kab hua

आपको बताते चलें की इस देश का भरपूर रूसीकरण इस लिए हुआ, क्योंकि उस समय सोवियत संघ सबसे बड़ा गणतंत्र, राजनैतिक, सांस्कृतिक और आर्थिक केंद्र था । इसी लिए विदेशों में लोग इसको गलती से ‘रूस’ बोल देते थे ।

सोवियत संघ किसे कहते हैं?

“सोवियत” शब्द के रूसी शब्द है जिसका वास्तविक अर्थ है असेंबली, परिषद, सलाह और सद्भाव । यहाँ का मौसम यूरोपीय देशों के समान होता है और यह ठंडी जलवायु वाला प्रदेश  है ।

सोवियत संघ की स्थापना कब हुई थी?

सोवियत संघ की स्थापना 1917 ईस्वी में हुई थी । इसकी स्थापना रूसी क्रांति के साथ शुरू हुआ और रूसी सम्राज्य के सम्राट(जार) को पद से हटा दिया गया । Soviyat Sangh ka Vighatan kab hua

1922 ईस्वी में बोलशेविक की पूर्ण जीत के साथ ही सेना ने यूक्रेन, रूस, बोलारूस तथा कॉकस को मिलाकर सोवियत संघ की स्थापना हेतु ऐलान कर दिया ।

सोवियत संघ का औपचारिक विखंडन

26 दिसंबर 1991 ईस्वी को विघटित घोषित हुआ था । इसके विघटन के पूर्व मिखाइल गोंर्वाचेव सोवियत संघ के राष्ट्रपति रह चुके थे । लेकिन सबसे बड़ी बात यह हुई की विघटन के पूर्व ही उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया । इसमें एक बात और यह था की सोवियत संघ के विघटन के घोषणा के साथ ही सोवियत संघ के भूतपूर्व गणतंत्रों को स्वतंत्र मान लिया गया ।

सोवियत संघ का विघटन कब हुआ?

वैसे इस बात की मान्यता है की विघटन की प्रक्रिया मिखाइल गोंर्वाचेव के पद ग्रहण के साथ ही शुरू हो गया था । हालांकि इसके विघटन के अनेक कारण है जिसको जानना बहुत जरूरी है ।Soviyat Sangh ka Vighatan kab hua

1917 ईस्वी में के बोलशेविक क्रांति हुई थी जिसने सोवियत संघ नामक साम्यवादी राज्य को जन्म दिया । सोवियत संघ की शुरू में ही यह स्पष्ट धारणा था की राजनीतिक व्यवस्था और साम्यवादी संगठन पूरी तरह से समाजवादी विचारधार पर निर्भर होंगे और साथ ही साम्यवादी मार्क्सवादी दर्शन राष्टहित को एक नई परिभाषा देंगे । इसको पूंजीवादी पश्चिमी राज्यों ने अपना जन्मजात शत्रु मान लिया ।Soviyat Sangh ka Vighatan kab hua

सर्वोच्च नेता के रूप में स्टालिन

इसके बाद तो जल्दी जल्दी कुछ घटनाएं घटीं जैसे-

जब 1920 ईस्वी में लेनिन की मृत्यु हुई तो स्टालिन ने स्वयं को सर्वोच्च नेता के रूप में घोषित किया और इसने अपने विरोधियों को बर्बरता के साथ उन्मूलन करना शुरू कर दिया । यह एक हनन कर्ता राज्य के रूप में गिना जाने लगा लेकिन स्टालिन की मृत्यु के बाद भी यह प्रक्रिया चलती रही और नागरिक स्वतंत्रता, प्रशासन और विदेश यात्रा पर प्रतिबंध लगने लगा । लोक भावना का स्तर गिरने लगा ।

यहाँ सबसे बड़ी बात यह हुई की सर्वहारा वर्ग स्वयं को अपने में इतना मशगूल कर लिया की आम जनता और मेहनतकश लोगों के हितों की कोई जमानत नहीं थी अर्थात उनको जरा भी महत्व नहीं दिया गया । इसलिए जनता का राज्य और उसकी व्यवस्था के ऊपर से विश्वास पूरी तरह उठ गया । लोगों के मन में इतना आक्रोश भर गया की जब व्यवस्था का अंत हुआ तो जनता ने चूँ तक नहीं किया क्योंकि जनता का गला रुँध गया था । Soviyat Sangh ka Vighatan kab hua

दरअसल, रूस उस समय दुनिया का सबसे बड़ा राज्य था और उसकी आबादी भी अद्भुत थी रूसी सत्ता ने जनता के हितों को ध्यान में रखकर एक केन्द्रीयकरण की नीति नहीं अपनाया। Soviyat Sangh ka Vighatan kab hua

इधर सोवियत साम्यवादी पार्टी ने केन्द्रीयकरण की नीति अपनाया लेकिन जातीय विविधता सोवियत संघ की राष्ट्रीय एकता और अखंडता के लिए खतरा साबित हुई । सोवियत साम्यवादी पार्टी इस गुत्थी को सुलझा नहीं पाए ।

हालांकि साम्यवादी पार्टी ने आर्थिक विकास और सामाजिक पुनर्सनरचना का एक मॉडल सामने रखा लेकिन इसकी सफलता में संदेह था और यही हुआ । इसकी आगे चलकर बड़ी निंदा हुई । इसकी आलोचना करने वालों में शामिल थे ट्राटासकी, स्टालिन माओवादी चीन आदि । ये लोग कहने लगे की अब सोवियत संघ साम्यवादी क्रांतिकारी राज्य नहीं रहा बल्कि एक सुधारवादी, प्रतिगामी और समझौतापरस्त ताकत बन गया है ।

आपको बता दें की सोवियत चीन विवाद और पूर्वी यूरोप के साम्यवादी देशों में असंतोष ये सभी सोवियत साम्यवादियों को कमजोर करने वाला था ।

सोवियत संघ मे आर्थिक समस्या

सैनिक और सामरिक दृष्टि से तो सोवियत संघ अमेरिका से बढ़कर था लेकिन उनकी आर्थिक वृद्धि दर काफी कमजोर होती रही ।

ये लोग अनुसंधान प्रतिस्पर्धा, शस्त्र निर्माण आदि पर कुछ ज्यादा खर्चे करने शुरू कर दिए साथ ही आफगानिस्तान तथा फिलिसतीन में आंतरिक हस्तक्षेप करना शुरू कर दिए जिससे इनकी अर्थव्यवस्था धाराशायी होने लगी ।

इसके अलावा पूर्वी यूरोप में समाजवादी राज्य स्थापित होने से इनको आर्थिक और सैनिक तथा राजनैतिक सहायता देने की नैतिक जिम्मेदारी इन्हीं के ऊपर थी । Soviyat Sangh ka Vighatan kab hua

इनकी आर्थिक वृद्धि दर दिन पर दिन घटती चली गई इससे कृषि उत्पादन और औद्योगिक उत्पादन में कमी आने लगी, आम जनता का जीवन दूभर होने लगा और नागरिकों के जीवन स्तर में गिरावट आई । यहाँ से अभावग्रस्त जीवन का सिलसिला चलने लगा । Soviyat Sangh ka Vighatan kab hua

इस सुलगती हुई जीवन में पश्चिमी प्रचार नए घी डालने का काम किया और उपभोक्ताओं के बढ़ते असंतोष तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अभाव ने सोवियत व्यवस्था को और कष्टदाई बना दिया।

इसके साथ ही और कुछ गलत नीतियाँ जैसे अमेरिका के परमाणु निर्मित अस्त्र शस्त्रों में बराबरी करने की महत्वाकांक्षा और राष्ट्रपति रीगन के समय में घोषित स्टार वार्स परियोजना को प्रभावहीन बनाने हेतु सोवियत संघ के द्वारा अपने रक्षा बजट में जबरदस्त वृद्धि करना और आफ़गनिस्तान में सैनिक हस्तक्षेप ने इनकी पूरी तरह कमर तोड़ दी और अन्तराष्ट्रिय बिरादरी में आलोकप्रियता का तमगा लगा दिया ।

मिखाइल गोर्वाचेव

11 मार्च 1985 को गोर्बाच्योव ने सोवियत संघ का नेतृत्व ग्रहण किया और इसी के साथ सोवियत साम्यवादी इतिहास का एक नया अध्याय शुरू हुआ। गोर्बाच्योव ने रूस की आर्थिक दशा में सुधार हेतु तथा साम्यवाद को सकारात्मक दृष्टि से मजबूत बनाने के लिए अपनी विशिष्ट नीतियों की घोषण की जिसे उस्कोरेनी (त्वरण) पेरेस्त्रोइका (पुनर्गठन) और ग्लास्नोस्त (खुलापन) के नाम से जाना जाता है।

मिखाइल गोंर्वाचेव का नेतृत्व ग्रहण

सोवियत साम्यवादी इतिहास का एक नया इतिहास मिखाइल गोंर्वाचेव के नेतृत्व ग्रहण से शुरू होता है । इन्होंने 11 मार्च 1985 ईस्वी में नेतृत्व ग्रहण किया था । इनकी प्रमुख नीतियाँ थीं-त्वरण(उसकोरेनी), पुनर्गठन(पेरेस्तरोंइका) और खुलापन(ग्लाइस्रॉसत) । ये रूस की आर्थिक दश में सुधार करना चाहते थे ।

त्वरण(उसकोरेनी) इसके तहत बहुत ज्यादा संसाधनों के इस्तेमाल के बजाय कार्यकुशलता में वृद्धि करके उत्पादन बढ़ाने पर जोर दिया गया । Soviyat Sangh ka Vighatan kab hua

पुनर्गठन(पेरेस्तरोंइका) नीति के अंतर्गत मनुष्य के सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, आत्मिक विकास की ओर बढ़ने हेतु था । यह एक नए गतिशील समाज की ओर अग्रसर होने की प्रक्रिया थी । इसका मूल था की मानव गरिमा और उसके मूल्य को सही दिशा मिले और एक गतिशील समाज की स्थापना संभव हो सके ।

इसके अंतर्गत कृषि क्षेत्र में सुधार, लीज और कान्ट्रैक्ट आदि के द्वारा निजी खेती को प्रोत्साहन मिला।लेकिन इसका विरोध भी हुआ ।

खुलापन(ग्लाइस्रॉसत):-इसके अंतर्गत खुली बहस को प्रोत्साहन दिया गया । इसके द्वारा समाजवाद को लोकतंत्र का राह देखाना था ।

आपको बता दें की गोंर्वाचेव की इन नीतियों से काफी हलचल मचा । चतुर्दिक परिवर्तन देखने को मिला और कैदियों तथा आम जनता को लौह एवं अनुशासन से कहीं न कहीं मुक्ति मिली । विदेश नीति में परिवर्तन आया । हालांकि इसका दुरुपयोग भी होने लगा ।

धीरे धीरे अलगाववाद हिंसात्मक रूप पकड़ लिया और कम्युनिष्ट नेता तो तख्ता तक पलटने पर आतुर हो गए । माहौल तो इतना बिगड़ गया की आनन फानन में गोंर्वाचेव को त्यागपत्र देना पड़ गया । अब सोवियत संघ की स्थिति और खराब हो गई और बिघटन की प्रक्रिया तेजी पकड़ ली । Soviyat Sangh ka Vighatan kab hua

इसके बाद सोवियत संघ के स्थान पर 15 स्वतंत्र गणराज्य की स्थापना हुई । गोंर्वाचेव की क्या भूमिका थी सोवियत संघ के विघटन में?

इतने बड़े साम्राज्य के विघटन में हम क्या सिर्फ एक व्यक्ति विशेष को जिम्मेदार ठहरा सकते हैं नहीं! हाँ कुछ नीतियाँ माध्यम बनती हैं लेकिन पूर्ण रूप से यही सत्य है पूरी तरह से नहीं कहा जा सकता है ।

यह प्रकृति का नियम है की जो जन्म लेता है उसी समय यह भी निश्चित हो जाता है की वो व्यक्ति या संगठन कब खत्म होगा । यह प्रकृति का नियम है ।

ऐसे ही साथियों जब सोवियत संघ का निर्माण हुआ तो उसके पतन का मार्ग भी उसी समय प्रशस्त हो गया था ।

देखिए समाजवादी व्यवस्था को पूरी तरह से जीवित रखने के लिए यह जरूरी होता है कि देश में समाजवादी मनुष्य,मानवता और संस्कृति को पैदा किया जाए लेकिन ऐसा करने में सोवियत संघ असफल रही ।

उधर स्टालिन के जबरदस्त केन्द्रीयकरण की नीति के कारण कुछ चीजें नियंत्रित रहीं लेकिन फिर भी उफान तो पैदा ही हुआ ।

सोवियत संघ के विघटन का क्या प्रभाव पड़ा?

सोवियत संघ के विघटन ने विश्व राजनीतिक परिदृश्य को परिवर्तित कर दिया। महाशक्ति के रूप में सोवियत संघ का अवसान हो गया और अब एकमात्र महाशक्ति के रूप में अमेरिका रह गया और विश्व का स्वरूप एकधु्रवीय (unipolar)हो गया। अमेरिका का पूरी दुनिया पर वर्चस्व स्थापित हो गया।

सोवियत संघ के विघटन से पूरा विश्व का नक्शा बदलने जैसा हो गया और अमेरिका ने पूरी दुनिया पर अपना वर्चस्व स्थापित कर दिया इसके अलावा शीतयुद्ध की समाप्ति हुई,साम्यवाद में गिरावट आई और बहुदलीय लोकतान्त्रिक शासन व्यवस्था की स्थापना हुई ।

इसके अलावा तृतीय विश्व के देशों को भी इससे गंभीर चोट पहुंची । इसका प्रमुख कारण यह था की इनको इस देश से आर्थिक, सैनिक और तकनीकी सहायता प्राप्त हो रही थी । एक पूरी तरह टूटा हुआ राज्य इनकी सहायता करने में असमर्थ था ।

आज आपने क्या सीखा?

Important Gyan में आज आपने सीखा की सोवियत संघ की स्थापना कब हुई,सोवियत संघ के कितने टुकड़े हुए, सोवियत संघ से कितने देश अलग हुए,सोवियत संघ के विघटन के बाद कितने गणराज्य का उदय हुआ,सोवियत संघ का विभाजन कौन से सन में हुआ आदि बातें । Soviyat Sangh ka Vighatan kab hua

Soviyat Sangh ka Vighatan kab hua:-

प्रश्न:-सोवियत संघ की स्थापना कब हुई?

उत्तर:-सोवियत संघ की स्थापना 30 दिसंबर 1922 ईस्वी में हुई थी ।

प्रश्न:-सोवियत संघ के कितने टुकड़े हुए?

उत्तर:-आपको बता दें की सोवियत संघ कुल 15 गणराज्यों से मिलकर बना था । 1990 ईस्वी में साम्यवादी शासन खत्म हुआ कुल 15 गणराज्य अलग अलग बने थे ।

प्रश्न:-सोवियत संघ से कितने देश अलग हुए?

उत्तर:-15 स्वतंत्र देशों के रूप में उभरकर सामने आए ।

प्रश्न:-सोवियत संघ के विघटन के बाद कितने गणराज्य का उदय हुआ?

उत्तर:-वैसे देखा जाए तो 1991 ईस्वी में गोंर्वाचेव की मृत्यु के बाद 15 स्वतंत्र गणराज्य उभर कर सामने आए ।

प्रश्न:-सोवियत संघ का विभाजन कौन से सन में हुआ?

उत्तर:-26 दिसंबर 1991 में हुआ था ।

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