Begum Hazrat mahal वाजिद अली शाह की प्रथम पत्नी थीं। आपको बता दें की ये अवध के शाशक थे। बेगम हजरत एक रानी थीं लेकिन फिर भी संकट के समय अंग्रेजों से लखनऊ को बचाने हेतु पुरजोर कोशिश किया था। इसके लिए ये बेझिझक मैदान में कूद गयीं। इस समय अर्थात १८५७ ईस्वी में डलहौजी भारत का वायसराय था और इसी वर्ष वाजिद अली शाह भी लखनऊ के नवाब बने थे।
बेगम हजरत का जन्म कब हुआ था?
इनका जन्म फ़ैजाबाद जिले के अवध प्रान्त में १८२० ईस्वी में हुआ था।
अवध पर कब्ज़ा कौन किया था?
वाजिद अली शाह एक विलासी प्रवृति के शासक थे जिनको हटाने के लिए योजना बनायीं जा चुकी थी। डलहौजी जानता था की ये एक विलासिता जीवन के अभ्यस्त हैं। डलहौजी ने अवध के रियासत को हड़पने की योजना बना लिया । पत्र अवध के नवाब के पास दूत लेकर पहुंचा और फिर वाजिद अली पर हस्ताक्षर करने के लिए जोर डाला गया। इसमें प्रावधान था की कम्पनी का पूरा अधिकार अवध पर स्थापित किया जायेगा। लेकिन वाजिद अली शाह ने इंकार कर दिया। लेकिन अंग्रेजो ने उनको नजरबंद करके कलकत्ता भेज दिया।
अब क्रांति का चूँकि बीज बो दिया गया था जिसके तहत लोग सरकार को उखाड़ फेंकने की योजना बना लिए इधर अवध, लखनऊ रहले खंड क्षेत्रों में भी क्रांति का बिगुल बजने लगा।
बेगम हजरत महल ने लखनऊ से नेतृत्व कब किया था?
आपको बताते चलें की लखनऊ में नेतृत्व Begum Hazrat mahal ने किया था १८५७ की क्रांति में। बेगम ने अपने नाबालिग पुत्र बिरजिस कादर को गद्दी पर बैठा दिया और स्वयं अंग्रेजी सेना का नेतृत्व किया। ७ जुलाई १८५७ से अवध का बागडोर हजरत महल के कमांड में आ गया।
Begum Hazrat mahal in Hindi
इधर १८५७ ईस्वी में मंगल पांडे के विद्रोह के बाद ही क्रांति की लहर मेरठ तक पहुँच गयी और आगे चलकर मेरठ के सैनिक दिल्ली के बादशाह बहादुर शाह से मिले और इससे उत्साहित होकर बहादुर शाह और जीनत महल ने उनका साथ दिया और आजादी की घोषणा कर दिया।
आपको बता दें की बेगम हजरत ने हिन्दू, मुस्लिम आदि को एक समान भाव से देखा और इन्होने सिपाहियों का हौसला बढ़ाया और उन्होंने सेना को जौनपुर एवं आजमगढ़ पर धावा बोलने का आदेश दिया लेकिन सभी सैनिक आपस में टकरा गए और इधर ब्रितानियों ने सिखों और राजाओं को एक सिरे से खरीद लिया अब यातायात के सारे सम्बन्ध टूटने लगे। फिर २१ मार्च तक लखनऊ ब्रितानियों के अधीन हो गया और बेगम कोठरी भी इनके अधीन होगया।
लेकिन Begum Hazrat mahal पहले ही महल को छोड़ दिया था फिर भी वे हिम्मत जुटाए रखा और मौलवी अहमदशाह की मदद भी किया तथा नाना साहब के साथ संपर्क कायम रखा। लखनऊ के पतन के बाद भी अभी भी बेगम हजरत के पास कुछ वफादार सैनिक और उनके पुत्र विरजिस कदीर का समर्थन मिला हुआ था।
इसी बीच १ नवंबर १८५८ ईस्वी को महारानी विक्टोरिया ने एक घोषणा में ईस्ट इंडिया कम्पनी का शासन भारत में समाप्त करके अपने हाथों में ले लिया जिसमें कहा गया था की रानी सबको उचित सम्मान देगी। लेकिन बेगम को ये रास नहीं आया और इसका विरोध किया और जनता को इसकी खामियों के बारे में बताया और वे अवध के देहातों में चली गयीं और क्रांति को जीवित रखी।
लखनऊ में बेगम महिला सैनिक दल की अगुआई रहीमी कर रही थी। ये फौजी भेष में रहती थीं और अधिकतम महिलाओं को तोप और बन्दुक चलाना सिखाया और इनके अगुआई में सभी महिलाओं ने अंग्रेजो से लोहा लेने में जरा भी नहीं हिचकी।
हैदरीबाई कौन थीं?
लखनऊ की एक तवायफ हैदरीबाई के यहाँ बहुत सारे अंग्रेज आते थे और कई बार तो वे क्रांतिकारियों के खिलाफ गुप्त योजनाएं बनाते थे जिसकी सुचना हैदरी बाई को मिल जाता था। ये भी एक देशभक्ति का परिचय देते हुए ये सभी सूचनाएं क्रांतिकारियों को दे देती थीं।
Begum Hazrat mahal ने अपने समय में अंग्रेजो से हर तरह से लोहा लिया लेकिन अंत में उनको हथियार डालना पड़ा और जाकर नेपाल में शरण लेना पड़ा। इनको नेपाल के राजा ने शरण दिया था जिनका नाम जंग बहादुर था।
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Important Gyan के इस सीरीज में मैं आप लोगों को ये बताने का प्रयास किया कि Begum Hazrat mahal in Hindi के लिए क्या पूरा विवरण है? मित्रों मुझे अपनी लेखनी को यहीं पर समाप्त करने का इजाजत दीजिये।
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