आर्य समाज के दस सिद्धांत क्या थे & Arya Samaj ki sthapna kisne ki 1874

Arya Samaj ki sthapna kisne ki: एक हिन्दू सुधार आंदोलन के रूप में विख्यात आर्य समाज की स्थापना स्वामी दयानंद सरस्वती ने 1874 ईस्वी में किया था । इनको इसके स्थापना की प्रेरणा मथुरा के स्वामी विरजानंद ने दिया था । आर्य समाज आंदोलन का प्रसार पाश्चात्य प्रभाओं की प्रतिक्रिया के रूप में हुआ था ।

Arya Samaj ki sthapna kisne ki

आर्य समाज की स्थापना कब और किसने की थी?

Arya Samaj ki sthapna:10 अप्रैल 1875 ईस्वी में मुंबई में दयानन्द सरस्वती ने आर्य समाज की स्थापना किए ।

Arya Samaj ki sthapna

Arya Samaj ki sthapna kisne ki: स्वामी दयानन्द सरस्वती और इनके गुरु विरजानन्द स्वामी दोनों ही शुद्ध वैदिक परंपरा में विश्वास करते थे और ‘पुनः वेदों की ओर चलो’ का नारा दिया था । ये लोग शुद्ध वैदिक परंपरा में विश्वास करते थे । मूर्ति पूजा, अवतारवाद, झूठे कर्मकांड आदि को पूरी तरह नकारते थे । ये जातिगत भेदभाव और छुआछूत का एक सिरे से विरोध किया । यज्ञोंपवित धारण करने और वेद पढ़ने का अधिकार स्त्रियों और शूद्रों को भी दिया । Arya Samaj ki sthapna kisne ki

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Bharat ke prathm rashtrapati kaun the
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आर्य समाज की स्थापना का उद्येश्य क्या था?

Arya Samaj ki sthapna: आर्य समाज की स्थापना का उद्देश्य प्राचीन वैदिक धर्म की शुद्ध रूप से पुनः स्थापना करना था । इसके अलावा जो झूठे धार्मिक विश्वास और सामाजिक विकृतियाँ कालांतर में हिन्दू समाज में आ गई थी उन्हें जड़ से उखाड़ फेंकने का प्रण लिया ।

Baksar ka yudh kab hua
Plasi ka yudh kab hua
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लाहौर में आर्य समाज की स्थापना कब हुई थी?

1877 ईस्वी में आर्य समाज लाहौर की स्थापना हुई । इसके बाद आर्य समाज का बहुत ज्यादा प्रचार प्रसार हुआ ।

आर्य समाज के दस नियम कौन से है?

  • जिस पदार्थ का ज्ञान विद्या से होता है उन सबका मूल परमेश्वर ही है ।
  • ईश्वर सर्वशक्तिमान,न्यायकारी,निराकार,दयालु,अनुपम,सर्वव्यापी,अजर अमर है ।
  • वेद का पढ़ना और पढ़ाना इसके अलावा सुनना और सुनाना आर्यों का परम धर्म और कर्तव्य है क्योंकि वेद सब सत्यविद्याओं का का पुस्तक है ।
  • व्यक्ति को सत्य को अपनाने और असत्य को छोड़ने में सदैव तत्पर रहना चाहिए ।
  • हर काम को धर्म के अनुसार करना चाहिए ।
  • शारीरिक,आत्मिक और सामाजिक उन्नति करना मुख्य उद्देश्य होना चाहिए ।
  • सबके साथ अच्छा,प्रीति पूर्वक और धर्मानुसार व्यवहार करना चाहिए ।
  • अविद्या का नाश करके विद्या की वृद्धि करना चाहिए ।
  • सिर्फ अपनी उन्नति को भूलकर सबकी उन्नति के लिए समझ रखना चाहिए ।
  • सब हितकारी नियम पालने में स्वतंत्र होना चाहिए ।

आर्य समाज का मुख्य योगदान क्या है?

  • आर्य समाज का सबसे अधिक प्रभाव विद्या और सामाजिक सुधार में देखने को मिलता है ।
  • स्वदेशी आंदोलन का सूत्रपात करने में आर्य समाज का मुख्य योगदान है और इसके साथ ही 85% स्वतंत्रा सेनानी आर्य समाज ने पैदा किया ।
  • स्वामी जी ने शुद्धि आंदोलन चलाया ताकि जो जो लोग अपना धर्म परिवर्तन कर चुके हैं वे पुनः हिन्दू धर्म में आ सकें ।
  • अभिवादन के लिए आर्य समाजियों ने ‘नमस्ते’ शब्द का इजात किया था ।
  • स्वामी जी ने ‘सत्यार्थ प्रकाश’ की रचना हिन्दी भाषा में करके हिन्दी की अद्वितीय सेवा किया ।
  • लाहौर में स्वामी जी के अनुयायी लाला हंसराज ने “दयानन्द एंग्लो वैदिक कालेज” की स्थापना किया था ।
  • काँगड़ी में ‘गुरुकुल विद्यालय’ की स्थापना स्वामी श्रद्धानन्द ने किया था 1901 ईस्वी में।
  • विदेशों में भी जाकर आर्य समाजियों ने हिन्दी भाषा में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया था ।
  • आर्य समाजियों ने भारत को तमाम महत्वपूर्ण विषयों जैसे हिन्दी, संस्कृत,विज्ञान,इतिहास और अन्य मुख्य विषयों का विद्वान दिया ।
  • इंडियन अर्नेस्ट के लेखक वेलेंटाइन शिरोल ने तो दयानन्द सरस्वती को “भारतीय अशान्ति का जन्मदाता’ और इनके सत्यार्थ प्रकाश को “ब्रिटिश साम्राज्य की जड़ें खोखली करने वाला’ बताया था ।
  • आर्य समाजियों ने एक ईश्वर पितृत्व,सभी मनुष्यों का भातृत्व, स्त्री-पुरुष की समानता और मनुष्यों और जातियों के बीच पूर्ण न्याय पर बल दिया हैं साथ ही प्रेम और दान पर बल दिया है ।
  • दयानन्द जिनका एक नाम मूलशंकर था । इनका जन्म 1824 ईस्वी में गुजरात में एक ब्राह्मण कुल में हुआ था। वैदिक परंपरा से बचपन से जुड़े दयानन्द जी योगाअभ्यास करने में रुचि लेने लगे। ये गृह त्याग कर 1860 ईस्वी में मथुरा में पहुंचे । इन्होंने यहीं स्वामी विरजानंद जी से वेदों का शुद्ध अर्थ जाना और झूठे धर्मों का खंडन करने के लिए ‘पाखंड खंडीनी पताका लहराया’
  • दयानन्द जी का उद्देश्य को धार्मिक, सामाजिक और राष्ट्रीय रूप से एकीकृत कर दिया जाय । इसके लिए इन्होंने जीवनपर्यंत संघर्ष किया ।
  • वे मूर्तिपूजा, बहुदेववाद, अवतारवाद, पशुबलि आदि झूठे कर्मकांडों की एक सिरे से अस्वीकार कर दिये । इन्होंने वेद को ही ईश्वरीय ज्ञान माना ।
  • दयानंद जी मानते थे की प्रकृति, आत्मा सत् है और परमात्मा सच्चिदानंद हैं । ये अनादि और अनंत हैं । इन्होंने नियति और एकत्ववाद को अस्वीकार करते हुए कर्म पर बल दिया था । इन्होंने ब्राह्मण और पुरोहितवाद के ढकोसले को भी चुनौती दिए। जो अन्य धर्म वाले हिन्दू धर्म पर अंगुली उठाते थे उस समय उन्होंने शास्त्रार्थ करके उन धर्मों में कई तरह की कमियाँ निकाला।
  • आपको बताते चलें की मापिला विद्रोह के समय और भारत विभाजन के समय जबरन मुस्लिम बनाए गए लोगों को पुनः हिन्दू धर्म में लाने का श्रेय आर्य समाजियों का ही है । आर्य समाज का प्रचार प्रसार पंजाब,उत्तर प्रदेश, राजस्थान और बिहार में अधिक हुआ ।

FAQ- Arya Samaj ki sthapna

प्रश्न:-आर्य समाजियों को किसने “भारतीय अशान्ति का जनक” कहा है?

उत्तर:-वेलेंटाइन शिरोल ने कहा था ।

प्रश्न:-सत्यार्थ प्रकाश किसकी रचना है?

उत्तर:-दयानन्द जी की रचना है ।

प्रश्न:-मूलशंकर किसका उपनाम था?

उत्तर:-दयानंद जी का नाम मूलशंकर था ।

प्रश्न:-दयानंद जी के गुरु का क्या नाम था?

उत्तर:-विरजानंद जी ।

प्रश्न:-आर्य समाज का सबसे अधिक प्रचार कहाँ हुआ था?

उत्तर:-पंजाब, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और बिहार में हुआ था ।

Important Gyan में आज हमने इस लेख में समझा की Arya Samaj ki sthapna kisne ki । अगर आप लोगों को इस लेख से संबंधित कोई प्रश्न हो तो हमें कमेन्ट के माध्यम से जरूर अवगत कराएं ।

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