एक दिलचस्प घटना जिससे लोमहर्ष ऋषि की मृत्यु हो गई!Lomharsh kaun the

Lomharsh:-साथीयों आज हम जानते हैं की लोमहर्ष ऋषि कैसे सूत जी कहलाये और बलराम जी के हाथों क्यों उनकी पराजय हुई?

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Lomharsh:-आपने प्रायः यह चर्चा पुराण या भागवत कथा को सुनते समय ये  जरूर सुना होगा की “सूत जी कहते हैं”, शौनक आदि ऋषि प्रश्न पूछते हैं और सूतजी उसका उत्तर कथा सुनाकर देते हैं।  क्या आपको पता है की सूत जी कौन थे और प्रत्येक कथा को यही सुनाते हैं।

Lomharsh

Lomharsh:-ये अपने नाम और कीर्ति से विख्यात थे और इनका असली नाम रोमहर्षण (लोमहर्षण) था। इसका अर्थ यह है की जब सूत जी पुराणों की कथा सुनाते थे तो सभी श्रोता गण उनकी कथा को सुनकर मन्त्रमुग्ध हो जाते थे और उनके रोम-रोम में हर्षण (रोमांच) हो जाता था ।

रोमहर्षण अग्नि से प्रकट हुए।

Lomharsh:-एक बार की बात है की राजा पृथु ने यज्ञ का आयोजन किया था और यज्ञ में देवराज इंद्र को हवि का भाग देने हेतु रोम रस को निचोड़ा जा रहा था। यहाँ पर हवि का अर्थ है-यज्ञ में देवताओं को दी जाने वाली आहुति का भाग। लेकिन यहाँ पर यज्ञ कराने वाले ऋषियों की गलती के कारण इंद्र के हवि में वृहस्पति का हवि मिक्स हो गया।  लेकिन देवताओं ने इसे इंद्र को अर्पण क्र दिया कर दिया।

Lomharsh:-कहते हैं न की जो होता है ठीक ही होता  है। जब दोनों हवियों के मिलने से  बहुत ही तेज और ओजस्वी सूत जी उत्प्नन हुए। चूँकि अग्नि  उत्पन्न  होने के कारण ये अयोनिज थे। इसका अर्थ है-स्त्री-पुरुष के लौकिक सम्पर्क के बिना उत्पन्न होना।

रोमहर्षणजी सूतजी के नाम से प्रसिद्ध थे क्योंकि ये सूत जाति से थे।  ब्राह्मण कन्या और क्षत्रिय पुरुष से उत्तपन्न होने के कारण ही उनको सूत कहा जाता था। वैसे देखा जाय तो शास्त्रों के अनुसार इंद्र देव क्षत्रिय थे और बृहस्पति ब्रह्मण अतः यही एक करण बनता है कि क्षत्रिय इंद्र देव के हवि में ब्राह्मण बृहस्पति का हवि मिलने से सूतजी उत्प्न्न हो गए। वर्णसंकरता के कारण ही ये सूत कहे गए। लेकिन यहाँ पर एक बात का ध्यान रखें की इनका जन्म किसी लौकिक स्त्री पुरुष के संसंर्ग से नहीं हुआ था।

भगवान की कथा कहने वाला सूतजी से बढ़कर कोई नहीं है!!!!

Lomharsh:-आपको बताते चलें की प्राचीन समय में सिर्फ ये ब्राह्मणों का ही अधिकार था की वे वेद-पुराण का अध्ययन कर सकते हैं लेकिन अति तीव्र बुद्धि के चलते स्वयं वेदव्यास ने सूत जी को सभी १८ पुराण पढ़ाए और खुद आशीर्वाद दिया की अब से तुम सभी पुराणों के वक्ता हो जाओगे। तब से व्यास जी पुराणों का भार सूत जी पर डालकर पूरी तरह चिंतामुक्त हो गए। इसके बाद तो पूछिए नहीं की अपनी प्रबल तीक्ष्ण बुद्धि के चलते सभी ग्रंथों को कंठस्थ कर लिया।

Lomharsh:-अट्ठासी हजार ऋषि निवास करते थे नैमिषारण्य में! इधर सूत जी सदैव ऋषियों के आश्रमों में घूम घूम करके कथा सुनाया करते थे। हालाँकि वे सूत जाति के थे लेकिन वे तीक्ष्ण बुद्धि और पुराणों के वक्ता होने के कारण सभी ऋषिगण इनका सम्मान करते थे, उनको ऊँचे आसन पर बैठा करके कथा सूना करते थे। जो जहाँ भी रहता थे और उसको पता चलता था की उक्त स्थान पर सूत जी कथा वाचन कर रहे हैं तो लोग दौड़ कर बड़े चाव से भाग आते थे कथा सुनने के लिए।

Lomharsh:-नैमिषारण्य में अट्ठासी हजार ऋषि निवास करते थे । सूतजी सदा ऋषियों के आश्रमों में घूम-घूम कर उन्हें कथा सुनाया करते थे । यद्यपि ये सूत जाति के थे किन्तु पुराणों के वक्ता होने के कारण ऋषिगण इनका बहुत आदर करते और इन्हें ऊंचे आसन पर बिठा कर, पूजा कर कथा सुनते थे । इनकी कथा इतनी अद्भुत होती थी कि जब आसपास के ऋषियों को पता चलता कि इस जगह सूतजी कथा सुनाने आए हैं, तो वे दौड़ कर इनकी कथा सुनने चले आते और इनकी चित्र-विचित्र कथा सुनने के लिए इनको चारों ओर घेर कर बैठ जाते थे ।

बलरामजी के हाथों हुई सूतजी की मृत्यु?

इस घटना को देखकर सभी  ऋषि गुस्सा गए बलराम जी पर और कहा की ये आपने ठीक नहीं  किया आपको ब्रह्म हत्या का पाप लगेगा।  इसका आपको प्रायश्चित करना पड़ेगा।  उसी अनुसार बलराम जी ने प्रायश्चित किया।  चूँकि सूतजी की मृत्यु ग्यारहवां पुराण सुनाते हुए मृत्यु हुई थी तो आगे का पुराण सूतजी के पुत्र उग्रश्रवा ने सुनाया।  उग्रश्रवा भी अपने पिता के समान ही ओजस्वी और तीव्र बुद्धि के थे।

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