ऋष्यश्रृंग ऋषि के पिता कौन थे?
Rishyasringa:-ऋष्यश्रृंग ऋषि के पिता का नाम महर्षि विभाण्डक था । ये महर्षि विभाण्डक ब्रह्मदेव के पौत्र महर्षि कश्यप के पुत्र थे । ये स्वभाव से बहुत ही उग्र और प्रसिद्ध तपस्वी थे ।
ऋष्यश्रृंग ऋषि कौन थे?
Rishyasringa:- ये महर्षि विभाण्डक के पुत्र थे। विभाण्डक एक महान तपस्वी थे । इनके मन में एक विचार उत्पन्न हुआ की मैं एक ऐसा तप करूंगा जो आज तक पृथ्वी पर कोई नहीं किया होगा । इस लिए वे घोर तपस्या में लीन हुए । जब उनका तप पूरा हुआ तो पूरा स्वर्गलोक तृप्त हो गया ।
Rishyasringa:- लेकिन इधर देवराज इन्द्र इनके तप को भंग करने हेतु कई स्वर्गलोक से अप्सराएं भेजे लेकिन इसका कोई असर नहीं हुआ । तब महर्षि विभाण्डक का तप तोड़ने के लिए इन्द्र ने उर्वशी को भेजा । लेकिन खूबसूरत उर्वशी के गोरे बदन को देखकर विभाण्डक बहक गए और उस पर मुग्ध होकर उसके साथ संसर्ग किए जिसके चलते इनका तपस्या भंग होगया ।
इस तरह विभाण्डक और उर्वशी के मिलन से एक पुत्र की प्राप्ति हुई । इस बालक के सर पर मृग की भांति श्रीन्ग(शृंग) था । इस तरह इनका नाम ऋष्यश्रृंग रखा गया ।
लेकिन इसके पीछे एक और लोक कथा प्रचलित है की उर्वशी के कोमल बदन को देखकर ऋषि विभाण्डक का तेज स्खलित हुआ और उन्होंने उसको जल में प्रवाहित कर दिया जिसे एक हिरनी ने पी लिया और उसको गर्भ ठहर गया । इस गर्भ के कारण उसने एक एक बालक को जन्म दिया । मृग का बच्चा होने के कारण ही इस बालक के सर पर एक सींघ निकल आया था ।
अतः इस कारण भी उस बालक का नाम ऋष्यश्रृंग पड़ा । इस तरह इस बालक का नाम शृंगी ऋषि और एकशृंग पड़ा ।
उर्वशी का स्वर्गलोग वापस जाना?
जब उर्वशी का स्वार्थ पूरा हुआ तो वह स्वर्गलोक वापस चली गई । चूंकि विभाण्डक उससे बहुत प्रेम कर बैठे थे अतः उनको बहुत दुख हुआ और वे स्त्री जाति से नफरत करने लगे और उन्होंने मन ही मन प्रतिज्ञा किया की मैं अपने पुत्र को कभी स्त्री जाल में नहीं पड़ने दूंगा ।
Rishyasringa
Rishyasringa:- वे अपने पुत्र के साथ घने जंगल में जाकर अपने बच्चे के पालन पोषण करने लगे । ऋष्यश्रृंग जवान होने तक अपने पूरे जीवन चक्र में कभी स्त्री का मुहँ नहीं देखा था । महर्षि विभाण्डक ने अपने पुत्र को आश्रम में रहने का निर्देश दिया और खुद पुनः तपस्या करने लगे ।
जिस वन में महर्षि विभाण्डक तप करते थे उसी वन में अंगदेश की सीमा भी पड़ता था। लेकिन महर्षि विभाण्डक ने इतना घोर तप किया की अंगदेश में अकाल पड़ गया लेकिन यहाँ के राजा थे रोमपाद अर्थात चित्ररथ । राजा इस घोर विपत्ति से काफी परेशान हुए ।
Rishyasringa:- दुर्भिक्ष से विचलित राजा चित्ररथ ने देशभर के विद्वानों को अपने राज्य में आमंत्रित कर इस बात को जानना चाहा की ऐसे कैसे हुआ । क्यों असमय और अकारण अकाल पड़ा हमारे राज्य में । तब विद्वानों ने कहा की महर्षि विभाण्डक के तप के कारण ही ऐसा हुआ है । लेकिन अब उनके तप को तोड़ने का मतलब की एक और आफत मोल लेना ।
लेकिन हर चीज का एक तोड़ होता है । ऐसी कोई समस्या नहीं जिसका समाधान नहीं । विद्वानों ने उपाय सुझाया की उनके एक पुत्र हैं ऋष्यश्रृंग जिनको किसी तरह अगर नगर में आमंत्रित किया जाए तो महर्षि विभाण्डक का तप टूट सकता है ।
तब रोमपाद ने अत्यंत सुन्दर देवदासियों को ऋष्यश्रृंग को बुलाने भेजा। जब ऋष्यश्रृंग ने उन सुन्दर स्त्रियों को देखा तो आचार्यचकित रह गए। उन्होंने ऐसा सौंदर्य और कोमल शरीर कभी नहीं देखा था। उन देवदासियों ने तरह-तरह से ऋष्यश्रृंग को रिझाना शुरू किया। उन स्त्रियों का स्पर्श पा ऋष्यश्रृंग को अपूर्व आनंद प्राप्त हुआ।
Rishyasringa:- अतः इस सुंदर उपाय को सुनकर रोमपाद खुश हुए और ऋष्यश्रृंग को रिझाने के लिए खूबसूरत और यौवन से युक्त देवदासियों को अरण्य में भेजा जहां ऋष्यश्रृंग आश्रम में रह रहे थे ।
ऋष्यश्रृंग जो कभी स्त्री का दर्शन दुर्लभ था इस गोरे बदन वाली देवदासियों को देखकर विचलित होने लगे और उनका रिझाना तो मानो ऋष्यश्रृंग के लिए स्वर्ग से बढ़कर सुख लगा । वे प्रेम जाल में फाँसकर अंगदेश के नगर में ले गईं ऋष्यश्रृंग को ।
ऋष्यश्रृंग के नगर पहुँचते ही वहाँ वर्षा हों लगी और दुर्भिक्ष समाप्त हो गया। इससे विभाण्डक ऋषि का तप टूटा और अपने पुत्र को आश्रम में ना पाकर वे क्रोध में भर कर अंगदेश की ओर चले।
Rishyasringa:- इधर जब रोमपाद को ये पता चला कि विभाण्डक क्रोध में उनके नगर में ही आ रहे हैं तो उन्होंने उससे पहले ही अपनी दत्तक पुत्री शांता, जो वास्तव में महाराज दशरथ और महारानी कौशल्या की पुत्री थी, का विवाह ऋष्यश्रृंग से करवा दिया। जब विभाण्डक ऋषि वहाँ पहुँचे तो शांता ने उनका स्वागत किया और उन्हें बताया कि वे उनकी पुत्रवधु हैं।
Rishyasringa:-जैसे ही ऋष्यश्रृंग नगर में प्रवेश किए अकाल समाप्त हो गया और इधर विभाण्डक का तप भी टूट गया । वे बहुत ही क्रोधित थे और तप टूटने के बाद अंगदेश के नगर में गए । राजा ने इस समाचार को जब पाया तो वो विचलित होने लगे । कोई उपाय नहीं सूझ रहा था तो वे अपनी दत्तक पुत्री शांता जो राजा दशरथ और महारानी कौशल्या की पुत्री थी से ऋष्यश्रृंग की शादी करा दिए ।
शांता ने देखा की महर्षि विभाण्डक नगर में प्रवेश कर रहे हैं तो वो उनकी सेवा में लग गई । वहीं अपने पुत्र को और पुत्रवधू को एक साथ देखकर महर्षि विभाण्डक का गुस्सा शांत हो गया । इस तरह वे दोनों को अरण्य में आश्रम में लेकर आए । इधर राजा दशरथ भी इस बात से खुश हए ।
जब दशरथ को ये पता चला कि उनकी पुत्री का विवाह हो गया है तो वे बड़े प्रसन्न हुए। किन्तु कोई पुत्र ना होने के कारण वे बड़े दुखी भी थे। जब उन्होंने अपनी ये व्यथा चित्ररथ को बताई तो उन्होंने कहा कि उनके जमाता ऋष्यश्रृंग अत्यंत तपस्वी है और वे अगर चाहें तो दशरथ पुत्र की प्राप्ति कर सकते हैं।
Rishyasringa:-इधर राजा दशरथ के कोई पुत्र नहीं था जिसका लोग उपाय खोज रहे थे । फिर विद्वानों ने ऋष्यश्रृंग का नाम सुझाया की वे बड़े तपस्वी हैं अगर वे चाहें तो दशरथ को पुत्र प्राप्त करवाने में सहायता कर सकते हैं ।
इस तरह राजा दशरथ ऋष्यश्रृंग के पास पहुंचे और अपने दुखड़ा रोए । इस व्यथा को देखते हुए ऋष्यश्रृंग अयोध्या जाकर पुत्रेष्टि यज्ञ किए और जिससे राजा दसरथ को चार पुत्र प्राप्त हुए । जहां पर यज्ञ हुआ था वहीं शांता का एक मंदिर है ।
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FAQs-Rishyasringa
प्रश्न:-शृंगी ऋषि की पत्नी का क्या नाम था?
उत्तर:-शृंगी ऋषि के पत्नी का नाम शांता था ।
प्रश्न:-शांता किसकी पुत्री थीं?
उत्तर:-शांता राजा दशरथ और महारानी कौशल्या देवी की पुत्री थीं ।
प्रश्न:-महर्षि विभाण्डक का तप किस अप्सरा ने भंग किया था?
उत्तर:-महर्षि विभाण्डक का तप उर्वशी अप्सरा ने भंग किया था ।
प्रश्न:-अंगदेश के राजा कौन थे?
उत्तर:-अंगदेश के राजा रोमपद या चित्ररथ थे ।
प्रश्न:-अंगदेश में अकाल क्यों पड़ा था?
उत्तर:-महर्षि विभाण्डक के घोर तप के कारण ।
प्रश्न:-महर्षि विभाण्डक किसके पुत्र थे?
उत्तर:-ब्रह्मदेव के पौत्र महर्षि कश्यप के पुत्र थे ।
Rishyasringa:-आज आपने क्या जाना? आज हम इस लेख में बताने का प्रयास किया है की Rishyasringa कौन थे और उनकी शादी किसके साथ हुई थी ।
Important Gyan: शायद आप लोगों को अपने उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर मिल गया होगा लेकिन अगर कहीं कोई त्रुटि रह गयी हो तो मानवीय भूल समझ कर क्षमा कर दीजियेगा और कोई सुझाव हो तो जरूर दें हम अपने लेख में उचित स्थान देंगे और कोई प्रश्न हो तो जरूर पूछे। Rishyasringa
आप लोगों को और अपना ज्ञानवर्धन करना चाहिए, अगर आप लोगों को लगता है की हमें और क्या पढ़ना चाहिए तो आप www.importantgyan.com के वेबसाईट पर नियमित विज़िट करके अपना ज्ञान बढ़ा सकते हैं । Rishyasringa
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