Humayun in Hindi

हजरत जन्नत आशियानी!Humayun in Hindi

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नमस्कार साथियों!

Important Gyan के इस सीरीज में आप सभी का स्वागत है । आज हम हजरत-जन्नत आशियानी अर्थात हुमायूँ के बारे में कुछ विस्तृत और बहुमूल्य ज्ञान लेकर आए हैं । आप इसको शुरू से लेकर अंत तक जरूर पढ़ें । यह आगामी विभिन्न महत्वपूर्ण परीक्षाओं के लिए उपयोगी है । इसमें से हर साल IAS, PCS, SSC, Banking आदि परीक्षाओं में निश्चित तौर पर प्रश्न आते हैं अतः आप इसको ध्यान से पढ़ें । Humayun

आज हम जानेंगे की हुमायूँ का जन्म कब हुआ था । हुमायूँ के माता पिता का क्या नाम था ।  हुमायूँ की प्रारम्भिक कठिनाइयाँ क्या थी? आदि बातों के बारे में विस्तार से पढ़ेंगे । Humayun

हजरत जन्नत आशियानि-निजामउद्दीन अहमद ने कहा था ।

हुमायूँ का जन्म कब हुआ था?

हुमायूँ का जन्म 1508 ईस्वी में काबुल में हुआ था ।

हुमायूँ के माता पिता का क्या नाम था?

इसके माता का नाम माहमबेगम था जो हिरात के हुसैन बेकरा की पुत्री थी । हुमायूँ के पिता का नाम जहीरुद्दीन बाबर था ।

हुमायूँ के भाई?

हुमायूँ के कुल तीन भाई थे जिनका नाम था-कामरान और आस्करी जिनका जन्म गुलरूख बेगम से हुआ था और हिंदाल जिनका जन्म दिलदार अगाची से हुआ था । Humayun

हुमायूँ ने किससे शिक्षा प्राप्त किया था?

हुमायूँ के गुरु का नाम था मौलाना-मसीह-उल-दिन सहूला और मौलाना इलियास जिनके संरक्षण में हुमायूँ ने शिक्षा प्राप्त किया था । आपको बता दें की हुमायूँ को अरबी, फारसी, तुर्की और ज्योतिष की अच्छी जानकारी हो गई थी । Humayun

हुमायूँ की प्रारम्भिक सफलताएं?

हुमायूँ ने हिसार फिरोजा में हामिद खान को पराजित किया था । इसके अलावा पानीपत और खनुवा के युद्ध में इसने भाग लिया था । इसको संभाल की जागीर मिली थी जहाँ इसकी तवीयत खराब हो गई । Humayun

हुमायूँ का राज्याभिषेक कहाँ और कब हुआ था?

बाबर की मृत्यु के तीन दिन बाद हुमायूँ का राज्याभिषेक हुआ था । हुमायूँ का राज्याभिषेक आगरा में 1530 ईस्वी में संपन्न हुआ था ।

हुमायूँ का विरोधी कौन था?

हुमायूँ को निजामुद्दीन खलीफा जो बाबर का वजीर था और हुमायूँ को राज काज के योग्य नहीं मानता था । यह चाहता था की मेहंदी ख्वाजा गद्दी पर बैठे और वही राजकाज देखे । आपको बता दें की मेहंदी ख्वाजा का विवाह बाबर की बहन खानजादा बेगम के साथ हुआ था । Humayun

हुमायूँ की प्रारम्भिक कठिनाइयाँ क्या थी?

असंगठित साम्राज्य:-आपको बता दें की बाबर के मृत्यु के समय मुग़ल साम्राज्य आकस्सस नदी से लेकर बिहार तक फैला हुआ था । इस समय इसका साम्राज्य संगठित नहीं था । Humayun

रसब्रुक विलियम ने कहा “बाबर का साम्राज्य केवल युद्ध कालीन परिस्थतियों में ही सुरक्षित रखा जा सकता था, शांति के समय यह निर्बल, रचनाहीन और आधारहीन था”

रिक्त राजकोष:-बाबर अपनी विजयों और खुशियों में धन का बहुत ज्यादा अपव्यय किया था । अतः इसका राजकोष बिल्कुल ही खाली हो चुका था ।

बाबर के सगे संबंधी:-हुमायूँ के संबंधी मेहंदीख्वाजा बाबर के बहनोई थे । इन्होंने निजामउद्दीन खलीफा के साथ मिलकर षड्यन्त्र किया हुमायूँ के खिलाफ । Humayun

हुमायूँ के भाई:-इसके अलावा हुमायूँ के तीनों भाई भी राजगद्दी के प्रलतम दावेदार थे । हुमायूँ और कामरान के बीच में साम्राज्य का बटवारा 6:5 के अनुपात में किया गया था । Humayun

भाई का नाम हिस्से में मिला क्षेत्र
कामरान काबुल, कंधार, पंजाब,मुल्तान और हिसार फिरोजा
आस्करीसंभल की जागीर
हिंदालअलवर और मेवात की जागीर

आस्करी और हिंदाल के बारे में लेनपूल ने कहा है की “सदैव कपटी और दुर्बल आस्करी और हिंदाल इस दृष्टि से खतरनाक थे की महत्वाकांक्षी लोग अपने हथियार की तरह इनको कोई भी प्रयोग में ला सकता था” । Humayun

गुजरात:-गुजरात के अफ़गान शासक बहादुरशाह की दिल्ली लेने की बहुत ज्यादा हसरत था । यह योग्य भी था और बहुत ज्यादा धनाढ्य भी  । इसने अपने प्रदेश में तुर्की तोपची रूमी खान के अधीन एक तोपखाने का भी निर्माण किया । अतः ये धीरे धीरे शक्तिशाली होते गए । इसके अलावा 10000 मुगल सैनिक बाबर की सेना को छोड़कर गुजरात चले गए थे । अहमद जमा मिर्जा को भी बहादुर शाह ने संरक्षण दिया था । Humayun

बंगाल:-नुसरतशाह ने भी बाबर को वचन दिया था की वह बाबर के किसी शत्रु को शरण नहीं देगा लेकिन इसने शत्रुओ को शरण देना शूर कर दिया ।

व्यक्तिगत परेशानियाँ:- हुमायूँ की अपनी कुछ व्यक्तिगत कठिनाइयाँ भी थीं । यह कुशल सेनानायक, कूटनीतिज्ञ और दृढ़ संकल्प नहीं था । लेनपुल ने लिखा है की “हुमायूँ की असफलता का मुख्य कारण उसकी सुंदर परंतु विवेकरहित दयालुता थी ।“ यह युद्ध तो करता था लेकिन युद्ध पूर्ण होने से पहले या तुरंत बाद में आमोद प्रमोद में व्यस्त हो जाता था । Humayun

हुमायूँ के प्रमुख अभियान:-

बाबर के मृत्यु के बाद हुमायूँ ने साम्राज्य का बंटवारा करके एक बड़ी भूल किया । इसके लिए इसको जीवन पर्यंत कीमत चुकानी पड़ी । इसने अपने प्रारम्भिक दिनों में कुछ अभियान किया । Humayun

कालिंजर का अभियान:-1531 ईस्वी

यहाँ का शासक प्रतापरुद्र देव था और इसकी निष्ठा बहादुर शाह में थी । हुमायूँ ने घेरा डालकर इनको अपनी अधीनता स्वीकार करने के लिए मजबूर कर दिया ।

अफगानों और चुनार के शेरखान के विरुद्ध अभियान:-1531 & 1532 ईस्वी

दौराह के युद्ध में हुमायूँ ने महमूद लोदी को पराजित कर दिया । इसके बाद से ही महमूद लोदी राजनीति से हमेशा के लिए पृथक हो गया । आपको बता दें की बीबन और वायजिद की सेवाएं महमूद लोदी को प्राप्त थी । Humayun

इसके बाद शेरखान ने अपने बेटे कुतुबखान के अधीन 500 सवारों को हुमायूँ की सेवा में भेजकर चुनार के दुर्ग को सुरक्षित कर लिया । इस संग्राम का निर्णय नहीं हुआ क्यूंकी कुतुबखान गुजरात के अभियान के बीच में ही वापस चला आया। Humayun

गुजरात से संघर्ष:-1535 -37 ईस्वी

इधर बहादुर शाह ने दक्षिण राज्यों से संधि कर ली । 1531 ईस्वी में मालवा को जीत लिया, 1532 ईस्वी में रायसीन को जीत लिया और 1535 ईस्वी में बहादुरशाह ने चित्तौड़ पर आक्रमण कर दिया । इस बढ़ते हुए प्रभाव को देखते हुए हुमायूँ ने बहादुरशाह पर आक्रमण करने की पूरी योजना बना डाला । जैसा का कर्नलटाड ने लिखा है की- इधर राणासंग्राम सिंह के पुत्र विक्रमाजीत की माता कर्णवती ने हुमायूँ को राखी भेजकर मदद मांगी थी ।  Humayun

गुजरात के शासकों का खजाना चम्पानेर के दुर्ग में रहता था । जगह जगह बहादुरशाह भागते रहे लेकिन हुमायूँ ने उनका पीछा किया और पराजित कर दिया । बहादुरशाह के भागने का क्रम इस प्रकार था-ग्वालियर(चित्तौड़)>>>मांडू>>>चम्पानेर>>>अहमदाबाद>>>कैम्बे>>>ड्यू

लेकिन अंतिम समय में बहादुरशाह ने पुनः गुजरात और मालवा को जीत लिया । लेनपून ने इस जीत पर कहा कहा ही की “मालवा और गुजरात जो की हुमायूँ के शेष राज्य के बराबर थे मुगलों के हाथ में पके फल की भांति आ टपके थे” । निजामउद्दीन अहमद ने भी कहा की हजरत जन्नत आशियनी गुजरात से लौटने के बाद आमोद-प्रमोद में लीन हो गए । Humayun

बिहार(शेरखान से संघर्ष-1537-40 ईस्वी)

चुनार को हुमायूँ ने घेर लिया और रूमी खान के तोपखाने से हुमायूँ ने चुनार के किले को जीत लिया । शेरखान ने भी गौड़ों को लूटकर सारी संपत्ति रोहताशगढ़ के किले में छिपा रखा था । Humayun

इधर हुमायूँ वाराणसी में आकर आमोद प्रमोद में लीन हो गया । इसी समय शेरखान ने हुमायूँ के पास प्रस्ताव रखा की बिहार में आप रहिए और बंगाल में मैं आपके अधीन रहूँगा । इस बात पर हुमायूँ राजी हो गया । Humayun

बंगाल का शासक ज्ञासुद्दीन महमूद हुमायूँ के दरबार में पहुँच गए लेकिन उनकी वहीं मृत्यु हो गई इसके बाद ही शेरखान से हुई संधि को हुमायूँ ने तोड़ दिया और बंगाल(गौड़) में पहुँच गया । आपको बता दें की हुमायूँ ने गौड़ का नाम बदलकर जन्नताबाद रखा । Humayun

हुमायूँ द्वारा लड़े गए प्रमुख युद्ध

आगरा के प्रशासक शेख बहलोल की हत्या हिंदाल ने कर दिया। इसके प्रति हुमायूँ की बड़ी श्रद्धा होती थी ।

प्रमुख युद्ध परिणाम
चौसा का युद्ध -शेरखान & हुमायूँ के बीच में
-हुमायूँ की पराजय ।
कन्नौज का युद्ध -शेरशाह & हुमायूँ के बीच में
-इस युद्ध में हुमायूँ की पराजय हुई और 15 वर्ष भारत से बाहर रहना पड़ा ।
मच्छीवारा का युद्ध -हुमायूँ ने तातार खान & हैबत खान को पराजित किया
सरहिन्द का युद्ध -हुमायूँ ने सिकंदर शाह को पराजित किया

चौसा का युद्ध:- 26 जून-1539 ईस्वी

आरा जिला-बिहार- के मैदान में कर्मनाशा नदी उत्तर प्रदेश और बिहार की सीमा बन गई ।

शेरखान & हुमायूँ के बीच में

इसमें शेरखान की विजय हुई और इसी विजय के बाद शेरखान ने शेरशाह की उपाधि धारण किया था । इसी युद्ध में हुमायूँ की जान एक भिश्ती ने बचाई थी जिसके लिए हुमायूँ ने एक दिन की बादशाहत दे दिया । इस भिश्ती ने अपने एक दिन की बादशाहत में चमड़े के सिक्के चलाए थे । Humayun

इसी युद्ध में मोहम्मद जमा मिर्जा खेत रहे और शेरखान ने बेगाबेगम को बंदी बना लिया था लेकिन सम्मान के साथ वापस भी कर दिया । Humayun

कन्नौज का युद्ध:- मई 1540 ईस्वी

इसको बिलग्राम का युद्ध भी कहा जाता है ।

शेरशाह और हुमायूँ के बीच में । इस युद्ध में भी हुमायूँ हार गया और आगरा की ओर भागा । लेकीन इसको आगरा भी छोड़ना पड़ा ।

निर्वासन काल 1540-55 ईस्वी

हुमायूँ आगरा से पंजाब और पंजाब से सिंध चले गए । इस समय सिंध के शासक शाह हुसैन आरगो थे ।

सिंध में ही हिंदाल एक आध्यात्मिक गुरु मीर बाबा या मीर आली अकबर जानी की पुत्री हमीदाबानो सिंध में थी जिसके प्रेम में हुमायूँ पड़ गए और 1541 ईस्वी में इनसे विवाह कर लिया ।

यहीं अमरकोट के राणा वीरसाल के महल में 1542 ईस्वी में अकबर का जन्म हुआ था । इसके बाद हुमायूँ सिंध छोड़कर कंधार चला गया और यहीं पर माहमअंगा और जीजी अंगा के सनरक्षण में बालक अकबर को छोड़कर हुमायूँ हमीदाबानो बेगम के साथ हुमायूँ ईरान चला गया । यहाँ के शाहतहमास्प प्रमुख थे जिन्होंने हुमायूँ को कंधार जीतने के लिए सैनिक सहायता का वचन दिया था ।  यहीं पर हुमायूँ शिया मत को स्वीकार किया ।

आपको बता दें की कमरान और आस्करी की मृत्यु मक्का में हो गई थी । इसने अपने भाइयों पर विजय के पश्चात भारत की ओर रुख किया ।

भारत की पुनरविजय 1555 ईस्वी

जब हुमायूँ ने भारत की ओर रुख किया तो इस समय का राजनीतिक परिदृश्य एकदम बदल चुका था । शेरशाह की मृत्यु के बाद सुर साम्राज्य का विघटन हो चुका था ।

राज्य शासक
पंजाब सिकंदर सूर
सिंध शाहहसन सूर
मालवा बाजबहादूर
गुजरात एतमाद खान(अहमदशाह-III-अल्पवयस्क)
संभल & दोआब इब्राहीम सूर
चुनार से बिहार आदिलशाह सूर
बंगाल मोहम्मद खान सूर

मच्छीवारा का युद्ध-15 मई 1555 ईस्वी

पंजाब के लुधियाना-सतलज नदी के निकट

हुमायूँ ने हैबत खान & तातार खान को पराजित किया था ।

सरहिन्द का युद्ध-1556 ईस्वी

हुमायूँ ने सिकंदर शाह को पराजित करके पूरा पंजाब छिन लिया । सिकंदर उज़्बेक ने दिल्ली पहुंचकर हुमायूँ को दिल्ली आमंत्रित किया । आपको बता दें की 15 वर्ष बाद हुमायूँ ने दिल्ली के गद्दी पर कब्जा कर लिया ।

हुमायूँ की मृत्यु कैसे हुई?

लेकिन 24 जनवरी 1556 ईस्वी को नमाज अदा करते हुए सीढ़ियों से गिरकर हुमायूँ की मृत्यु हो गई । हुमायूँ के दाईं कनपटी में काफी चोट आई थी जिससे वह बच नहीं पाया ।

प्रमुख विद्वान:

मिर्जा हैदर दोगलात की पुस्तक थी-‘तारीख-ए-रसीदी’ हुमायूँ के काल में पूरी हुई थी । आपको बता दें की E.D. Ross & N. Elias ने ‘तारीख-ए-राशिदी को अंग्रेजी में लिखा था ।

गुलबंदन बेगम की रचना ‘हुमायूँनामा’ अकबर के काल में पूरी हुई थी । मुहम्मद नादिर समरकंदी हुमायूँ के समय का चित्रकार था । इसके अलावा हुमायूँ ने मंसूर & मीर सैयद अली से भेंट किया था और इनको 1555 ईस्वी में भारत लाया था । अब्दुल समद को इसने शिरी कलम की उपाधि दिया और मीर सैयद आली को नादिर-उल-अस्र की उपाधि दिया था । ये दोनों ही चावल के दानों पर चौगानबाजी का सम्पूर्ण मैदान प्रदर्शित किये थे ।

स्थापत्य कला

दिनपनाह का महल का निर्माण हुमायूँ ने करवाया था । अकबर के काल में हुमायूँ के मकबरे का निर्माण इसकी बेगम हाजीबेगम ने भारतीय परिवेश में ईरानी आधार पर करवाया था । इस मकबरे का नक्सानवीस फारस का मीर मिर्जा ग्यास था।  आपको बता दें की दो बेहद सुंदर सुराहीदार गुंबद इस मबकरे पर है ।

यह मकबरा तैमूर की रानी बीबी खानम के मकबरे से साम्य रखता है । मकबरे के चारों ओर चहारदीवारी बनाने का काम हिंदुस्तान में इसी मकबरे से प्रारंभ हुआ था । इसमें जालीदार रोशनदान बने थे । इसी मकबरे को राजमहल का प्रेरणा स्रोत माना जाता है ।

प्रश्न:-हुमायूँ  की पत्नी का क्या नाम था?

उत्तर:-वैसे देखा जाए तो हुमायूँ की कई पत्नियाँ थीं लेकिन सबसे महत्वपूर्ण हमीदा बानो बेगम, बेगा बेगम, चाँद बीबी & हाजी बेगम था ।

उत्तर:-हुमायूँ ने कितने युद्ध लड़े?

उत्तर:-वैसे हुमायूँ ने कई अभियान किया लेकिन उसके कुछ इतिहास प्रसिद्ध युद्ध हैं जिसमें से कुछ में वह पराजित हुआ और अपना राज्य खोया तथा  कुछ में विजय हासिल करके दोबारा राज्य स्थापित किया ।
चौसा और कन्नौज यानि बिलग्राम का युद्ध करके वह शेरशाह से पराजित हुआ जिसके कारण उसको 15 वर्ष का निर्वासन काल व्यतीत करना पड़ा लेकिन मच्छीवारा और सरहिन्द का युद्ध करके पुनः अपना खोया हुआ राज्य हासिल किया ।

प्रश्न:-तारीख-ए-राशिदी को अंग्रेजी मे किसने लिखा था?

उत्तर:- E.D. Ross & N. Elias ने ‘तारीख-ए-राशिदी को अंग्रेजी में लिखा था

प्रश्न:-हुमायूँनामा किसकी रचना थी?

उत्तर:-ख्वादामीर ने हुमायूँनामा की रचना किया था ।

प्रश्न:-हुमायूँ के मकबरे का निर्माण किसके शासन काल में हुआ था?

उत्तर:-अकबर के काल में ।

प्रश्न:-नादिर-उल-अस्र की उपाधि किसकी थी?

उत्तर:-मीर सैयद अली की थी ।

प्रश्न:-चावल के दाने पर चौगानबाजी का सम्पूर्ण खेल का मैदान किसने बनाया था?

उत्तर:-अब्दुल समद और मीर सैयद अली ने बनाया था ।

प्रश्न:-मच्छीवारा का युद्ध सम्पन्न हुआ था?

उत्तर:-12 मई 1555 ईस्वी में ।

प्रश्न:-सरहिन्द के युद्ध में हुमायूँ ने किसको पराजित किया था?

उत्तर:-सिकंदरशाह सुर को पराजित किया था ।

प्रश्न:-कनौज का युद्ध और किस नाम से जाना जाता था?

उत्तर:-बिलग्राम के युद्ध के नाम से जाना जाता था ।

प्रश्न:-हुमायूँ ने गौड़ प्रदेश का क्या नाम रखा था?

उत्तर:-जन्नताबाद रखा था ।

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