जलालउद्दीन खिलजी ‘खिलजी क्रांति के जनक और खिलजी वंश’ के संस्थापक Jalaluddin Khilji in Hindi
जलालुद्दीन फिरोजशाह खिलजी 1290-1296 ईस्वी
खिलजी वंश के संस्थापक कौन थे?
जलालुद्दीन खिलजी ने दिल्ली में एक नवीन वंश की स्थापना किया था । ये लोग तुर्क थे । इनको तुर्क मानने वाले प्रमुख विद्वान थे-फखरूद्दीन, रावर्टी, बर्थोल्ड और किशोरीशरण लाल । लेकिन बरनी इनको तुर्क नहीं मानता था । Jalaluddin Khilji in Hindi
खलजी का क्या अर्थ है?
अफगानिस्तान में हेलमंद नदी की घाटी के प्रदेश को ही खलजी नाम से पुकारा जाता था और जो जातियाँ इसमें अपना बसेरा बना ली थी उसी को खलजी बोला जाता था।
इनका रहन सहन और रीति रिवाज अफगानों की तरह था अतः भारत में भ्रम से ही इनको अफ़गान समझा जाता था । Jalaluddin Khilji in Hindi
खलजी क्रांति क्या था?
खलजियों द्वारा दिल्ली की सत्ता पलटने को ही खलजी क्रांति कहा जाता है । के एस लाल ने भी कहा है की खलजी क्रांति ने न केवल एक नवीन वंश की स्थापना बल्कि विजय का एक नया सिलसिला, कूटनीति का नया प्रयोग तथा अतुलनीय साहित्येक गतिविधियों के एक युग का आरंभ किया। Jalaluddin Khilji in Hindi
आपको बता दें की खलजी वंश के किसी भी सुल्तान ने खलीफा से अपने पद की स्वीकृति लेने की आवस्यकता नहीं समझा। इसके अलावा इन्होंने अपनी शक्ति विस्तार में नहीं जानता से सहायता ली, नहीं सरदारों से और न उलेमा वर्ग से। इन्होंने तो यह सिद्ध कर दिया की राज्य को बिना धर्म की सहायता से भी चलाया जा सकता है । भले ही ये लोग अच्छा किए या बुरा ।
जलालुद्दीन फिरोजशाह खिलजी कौन था?
जलालुद्दीन के पूर्वज पहले से ही भारत में बसे थे और तुर्क सरदारों की सेवा में थे । जलालुद्दीन भी शाही अंगरक्षक और सामना के सूबेदार के पद पर कार्य करते हुए कई अवसरों पर मँगोलों के साथ लोहा ले चुका था। Jalaluddin Khilji in Hindi
इसके बाद सुल्तान कैकुबाद ने इसको दिल्ली बुलाया और सेनामंत्री का पद दिया और साथ ही इसको ‘शाइस्ताखान’ की उपाधि भी दिया । यह एक योग्य सेनापति साबित हुआ लेकिन तुर्क सरदारों के इसके खिलाफ षड्यन्त्र के चलते इसने दिल्ली का तख्ता पलटने का निश्चय कर लिया ।
इसने बलबन के उत्तराधिकारियों कैकुबाद और क्यूमर्स की जीवन लीला समाप्त करते हुए दिल्ली के तख्त पर आसीन हुआ ।
जैसा की ए. एल. श्रीवास्तव ने कहा है की जलालुद्दीन ने उदार निरंकुशवाद के आदर्श को जनता के सम्मुख रखा था।
यह 70 वर्ष का वृद्ध शासक था और युद्ध प्रिय नहीँ था । इसने लुटेरों, ठगों और षड्यन्त्रकारियों को माफी दे दिया।
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जलालुद्दीन फिरोजशाह खिलजी ने अपना राज्याभिषेक कहाँ करवाया था?
जलालुद्दीन ने अपूर्ण किलोखरी(किलुगढ़ी) के महल में अपना राज्याभिषेक करवाया था । जब सुल्तान बना तो इसने किलुगढ़ी के महल को पुरा करवाया । आपको बता दें की जलालुद्दीन को दिल्ली लाने का श्रेय फखरूद्दीन को ही जाता है । Jalaluddin Khilji in Hindi
जब ये दिल्ली आया तो बलबन के लाल महल में प्रवेश किया था । इसने बलबन के भतीजे को कडा और मानिकपुर का हाकिम बनाया था। ख्वाजा खातिर को वजीर का पद दिया।
जलालुद्दीन ने अपने बड़े पुत्र को ‘खान-ए-खाना’, दूसरे पुत्र को ‘अरखली खान’ और तीसरे पुत्र को कद्रखान की उपाधि दिया । अरकली खान अपने समय में कठोर दंड देने के लिए प्रसिद्ध था ।
इसने अपने भतीजे आलीगुरसस्प(अलाउद्दीन खिलजी) मलिक-ए-तुजुक की उपाधि दिया था।
बलबन के उत्तराधिकारी कैकुबाद ने इस महल को बनवाया था। यह महल दिल्ली में ही था और इसी महल में जलालउद्दीन खिलजी ने अपना राज्याभिषेक कर वाया था ।
मलिक छज्जु कौन था?
मलिक छज्जु बलबन का भतीजा था और कडा तथा मानिकपुर का प्रदेश इसी के अधीन था।
मलिक छज्जु का विद्रोह
1290 ईस्वी में मलिक छज्जु ने विद्रोह कर दिया और ‘सुल्तान मुगीसुद्दीन’ की उपाधि धारण की और अपने नाम के सिक्के चलवाए और खुतबा पढ़वाया। इसने अवध के हाकिम ‘अमीर अली हातिमखान’ को भी अपने पक्ष में कर लिया। आपको बता दें की यह अमीर अली फकीरों को सोने, चांदी के टंके दान में दिया करता था । अमीर खुसरो ने भी इसकी तारीफ किया है।
मलिक छज्जु का विद्रोह अरकली खाँ ने दबा दिया । जलालुद्दीन ने इसको माफ भी कर दिया। मलिक छज्जु अपनी ही मौत मरा था। Jalaluddin Khilji in Hindi
ठगों का दमन
जलालुद्दीन ने लगभग 1000 ठगों को बंदी बनाकर बंगाल भेज दिया था ।
जलालुद्दीन के विरुद्ध षड्यन्त्र
जलालुद्दीन के उदार और शांत स्वभाव के चलते कुछ महत्वाकांक्षी और उदण्ड सरदारों ने अमीरों के चालीस दल के एक सरदार मलिक तजुद्दीन कूची को सिंहासन पर बैठाने हेतु षड्यन्त्र किए ।
जब इस बात की खबर सुल्तान को मिली तो वह इनको भी माफ कर दिया। अब कडा और मानिकपुर का हकीम अलाउद्दीन को बनाया गया। Jalaluddin Khilji in Hindi
सीदी मौला कौन था?
सीदी मौला ईरान से आया हुआ एक फकीर था । इनके पास धन बहुत ज्यादा हो गया था । कुछ व्यक्ति इनको समझते थे की इनके पास तंत्र-मंत्र की विद्या है। इसलिए गुमराह लोग इससे दिन पर दिन जुडने लगे।
सीदीमौला का विद्रोह-
ये सुल्तान के विरुद्ध कुछ अनैतिक कार्य भी करने लगे । जब सुल्तान को इसकी खबर लगी तो सुल्तान तिलमिला गया। सुल्तान ने इससे पूछा भी की आप ऐसा क्यों कर रहे तो सीदी मौला ने इस बात को स्वीकार नहीं किया।
सुल्तान को पहली बार बहुत गुस्सा आया और सीदी मौला को मार देने को कहा । अरकली खाँ ने तुरंत इसको मरवा दिया । ध्यान रखें की इसको हाथी के पैरों तले कुचल दिया गया था।
लेकिन बर्नी का कहना है की इसी के बाद देश में अकाल पड़ा और लोग भूखों मरने लगे। इस आकाल के वजह से लोग यमुना नदी में कूद कर जान देने लगे ।
रणथंभौर का अभियान-1290 ईस्वी में
रणथंभौर चौहनों की सत्ता का केंद्रविंदु था । यहाँ का राजा राणा ह्म्मीरदेव थे । लेकिन जलालुद्दीन इस किले के प्रबंधन को देखकर इससे लोहा लेना उचित नही समझा और अपने सैनिकों से कह दिया की “वह एक मुसलमान के एक बाल को ऐसे दस किलों की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण समझता हूँ ।“-बरनी
मनदौर की विजय-1292
लेकिन 1292 ईस्वी में मनदौर की विजय की गई।
मंगोलों का आक्रमण-1292 ईस्वी
1292 ईस्वी में मंगोलों का आक्रमण हुआ था । यह आक्रमण अब्दुल्ला खाँ के नेतृत्व में हुआ था । यह हलाकूखान का प्रपौत्र था । इसके परिणाम के बारे में बहुत ज्यादा निश्चित जानकारी नहीं हैं ।
उलुगखान के नेतृत्व में 4000 मंगोल दिल्ली में आकर बस गए और मुस्लिम धर्म स्वीकार कर लिया इन्हीं को नवीन मुसलमान कहा गया है। ये मँगोल लोग दिल्ली के मुगलपुरा नामक स्थल पर आकर बसे थे । चंगेजखाँ अपने युग का अभिशाप माना जाता था ।
खुदाबंदजहां राजमाता को कहा जाता था और मलिक-ए-जहां राजरानी को कहा जाता था।
अली-गुरसस्प (अलाउद्दीन खिलजी) के दो अभियान जलालुद्दीन के काल में
अली-गुरसस्प (अलाउद्दीन खिलजी) ने 1292 ईस्वी में मालवा में स्थित भीलसा(विदिशा-एमपी) पर आक्रमण किया । यहाँ से उसने बहुत ज्यादा धन लूटा और जलालउद्दीन के पास भेज दिया ।
चूंकि अलाउद्दीन की नजर दिल्ली की सत्ता पर टिकी थी लेकिन इसके लिए बहुत ज्यादा धन की अवस्यकता थी । इसने देवगिरि के धनसंपदा के बारे में सुन रखा था । अतः इस पर आक्रमण करने की पूरी योजना बना लिया।
अलाउद्दीन खिलजी का देवगिरि अभियान
आपको बता दें की देवगिरि महाराष्ट्र में एक प्राचीन नगर था यह किला अविजित था और उत्तर तथा दक्षिण भारत के बीच में था । यहाँ का शासक रामचंद्रदेव था ।
अलाउद्दीन ने जलालुद्दीन खिलजी से चँदेरी पर आक्रमण करने का आदेश लेकर चँदेरी और भीलसा होते हुए एलीचपुर में पहुँच गया।
यहाँ रामचंद्रदेव के सरदार कान्हदेव को मार दिया । बड़े मसकक्त के बाद अलाउद्दीन और रामचंद्रदेव के बीच संधि हो गई । संधि के तहत अलाउद्दीन को बहुत सारा धन मिला । मुसलमानों का दक्षिण भारत में यह पहला आक्रमण था जिससे जनता भयग्रस्त हो गई ।
जलालुद्दीन खिलजी की हत्या किसने की?
अब अलाउद्दीन का उत्साह अपने चरम पर था वह दिल्ली को हथियाने के लिए आग बढ़ा और जलालुद्दीन से मिलने की इच्छा जाहीर की । अलाउद्दीन की इस विजय की गाथा से वह फुले नहीं समाया । आगे बढ़ा और कुछ नाटकीय घटना के बाद जलालुद्दीन और अलाउद्दीन गले मिले।
अलाउद्दीन ने मुहम्मद सलीम को वार करने के लिए इशारा किया जब जलालुद्दीन घायल अवस्था में भाग रहा था तो इख्तियारूद्दीन हूद ने उसको मौत के घाट उतार दिया । 1296 ईस्वी में इसका वध कर दिया गया। अमीर खुसरो की पुस्तक ‘मिफता-उल-फ़ुतूह’ में जलालुद्दीन के अभियानों का वर्णन हुआ है।
इसके समय में शिक्षा और साहित्य की उन्नति हुई और इसके समय में कुतुबुद्दीन अलवी, सादुद्दीन ख्वाजा, ख्वाजा जमालउद्दीन और मुईद जर्मि जैसे विद्वान थे। अमीर खुसरो भी इस समय इसके शासन काल में कृपा का पात्र बना ।
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Important Gyan के इस सीरीज में मैं आप लोगों को ये बताने का प्रयास किया कि खिलजी वंश की स्थापना किसने किया था । मित्रों मुझे अपनी लेखनी को यहीं पर समाप्त करने का इजाजत दीजिये। Jalaluddin Khilji in Hindi
अगर कहीं कोई त्रुटि रह गयी हो तो मानवीय भूल समझ कर क्षमा कर दीजियेगा और कोई सुझाव हो तो जरूर दें हम अपने लेख में उचित स्थान देंगे और कोई प्रश्न हो तो जरूर पूछे। Jalaluddin Khilji in Hindi
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