Guruvayur satyagraha

Guruvayur satyagraha सफल होते हुए भी इसमें सबसे बड़ी क्या कमी थी?

गुरुवायुर सत्याग्रह का प्रारंभ

गुरुवायुर सत्याग्रह का प्रारंभ 01 नवंबर 1931 में हुआ था ।

गुरुवायुर सत्याग्रह का उद्देश्य

यह आंदोलन दलितों और पिछड़ों को ‘गुरुवायुर मंदिर’ में प्रवेश का अधिकार दिलाना चाहता था । आपको बता दें की दलित व पिछड़े वर्गों के सामाजिक व आर्थिक उत्थान और साथ ही छुआछूत उन्मूलन के लिए भरपूर संघर्ष 1924 के बाद भी जारी रहा । यह गांधी जी के ‘रचनात्मक कार्यक्रमों का ही एक हिस्सा था । guruvayur satyagraha

गुरुवायुर सत्याग्रह किसके द्वारा शुरू हुआ?

अतः के. कलप्पड़ के कहने पर केरल कांग्रेस कमेटी के द्वारा एक नवंबर 1931 ईस्वी में ‘गुरुवायुर में मंदिर प्रवेश सत्याग्रह’ छेड़ने का निर्णय लिया गया । इस समय तक असहयोग आंदोलन स्थगित हो चुका था । guruvayur satyagraha

गुरुवायुर सत्याग्रह का जत्था

16 स्वयंसेवकों का एक जत्था पीत सुब्रहण्यम तिरुमाबु के नेतृत्व में 21 October पैदल मार्च शुरू किया । यह जत्था कन्नामूर से गुरुवायुर तक चला था । guruvayur satyagraha

गुरुवायुर सत्याग्रह मार्च में शामिल वर्ग या लोग

इस जत्था में पिछड़ी जाति, हरिजन, ऊंची जाति, नांबुदरी तक के लोग शामिल थे । इस पैदल मार्च ने पूरे देशभर में जाति-विरोधी भावना को उकसाया था ।

गुरुवायुर सत्याग्रह पैदल मार्च का कार्यक्रम स्वरूप

एक नवंबर को ‘अखिल केरल मंदिर प्रवेश दिवस’ मनाया गया । इस दिन प्रार्थनाएं हुईं, जुलूस निकले, सभाएं आयोजित की गई, चन्दा इकट्ठा किया गया ।

गुरुवायुर सत्याग्रह पैदल मार्च का कार्यक्रम केंद्र

गुरुवायुर जैसे कार्यक्रम मद्रास,मुंबई,दिल्ली, कलकता और कोलंबो में भी आयोजित किए गए ।

इसे बहुत ही अच्छी लोकप्रियता मिली। राष्ट्रीय स्तर के बहुत सारे नेता कोलंबो पहुंचे । इस आंदोलन में युवावर्ग सबसे ज्यादा उत्साहित था । छुआछूत विरोधी आंदोलन बहुत ज्यादा जोर पकड़ लिया और लोग चन्दा और चढ़ावा मंदिर में न देकर सत्याग्रहियों को देना शुरू कर दिया । guruvayur satyagraha

इधर माहौल बहुत ज्यादा बिगड़ गया और सत्याग्रही मंदिर में न प्रवेश कर पाएं इसके लिए बहुत ज्यादा इंटेजाम किया गया और इनको मारने पीटने की भी धमकी दी गई । सत्याग्रही मंदिर में न प्रवेश करें इसके लिए मंदिर के चारों ओर कटीले तार लगाए गए । guruvayur satyagraha

सत्याग्रहियों पर जोरदार हमला

01 नवंबर को ही शुभ्र खादी पहने हुए 16 सत्याग्रही मंदिर के पूर्वी प्रवेश को मार्च करते हुए आगे बढ़े । यहीं स्थानीय कर्मचारी और प्रतिक्रियावादी लोगों ने इन पर हमला कर दिया और पोलिस खड़ी तमाशा देख रही थी ।

इसी चपेटे में पी. कृष्ण पिल्लई और ए. के. गोपालन को बुरी तरह पीटा गया । आपको बता दें की ये दोनों बाद में केरल में कॉम्युनिष्ट आंदोलन के बड़े नेता के रूप में उभरकर सामने आए । guruvayur satyagraha

आंदोलन ने और जोड़ पकड़ा

इसी बीच जनवरी 1932 ईस्वी में असहयोग आंदोलन दोबारा शुरू हो गया । इधर सरकार ने सभी कांग्रेस कमेटियों को गैर कानूनी घोषित करना शुरू कर दिया । बड़े बड़े नेताओं को जेल में डाल दिया। guruvayur satyagraha

21 सितंबर 1932 ईस्वी को सत्याग्रह ने जुझारू रुख अपना लिया । के. कलप्पन आमरण अनशन पर बैठ गए । इनके अनशन का मुख्य उद्देश्य था-जब तक की दलितों के लिए मंदिर के दरवाजे नहीं खोल दिए जाएंगे तब तक मैं ये अनशन नहीं तोड़ूँगा । अब चतुर्दिक माहौल गरम हो गया। guruvayur satyagraha

ये सब गांधी जी देख रहे थे। उन्होंने के कलप्पन जी से अनुरोध किया की वे अनशन तोड़ दें । के कलप्पन जी ने 2 अक्टूबर 1932 ईस्वी को अनशन तोड़ दिया । सत्याग्रह भी स्थगित कर दिया गया । लेकिन आपको बता दें की मंदिर में प्रवेश के लिए आंदोलन चलता रहा । guruvayur satyagraha

आगे का कार्यक्रम कैसा था?

 ए के गोपालन के नेतृत्व वाला एक जत्था पूरे केरल में पैदल यात्रा किया । जनमत तैयार किया, सभाएं आयोजित की गई। इसी बीच सरकार ने जत्थे पर प्रतिबंध लगा दिया । लेकिन ये जत्था तब तक एक हजार मिल की यात्रा कर चुका था और 500 सभाओं को संबोधित भी कर चुका था। इस समय तक भी गुरुवायुर मंदिर नहीं खुला था ।

लेकिन आगे चलकर नवंबर 1936 ईस्वी में त्रावणकोर के महाराजा ने एक आदेश पारित कर सरकार नियंत्रित सभी मंदिरों को हिंदुओं के सभी जातियों के लिए खोल दिया। मद्रास में भी राजगोपालाचारी के नेतृत्व वाले मंत्रिमंडल द्वारा भी कुछ ऐसा ही किया गया । guruvayur satyagraha

गुरुवायुर सत्याग्रह का पैटर्न क्या था?

इस आंदोलन ने वे सभी प्रकार के रणनीतियों को अख्तियार किया जो राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान अपनाया गया था। राष्ट्रीय एकता को एक मजबूत आधार दिया, छुआछूत के खिलाफ सशक्त जनमत तैयार किया । guruvayur satyagraha

लेकिन यह भी कहा जा सकता है की भारत में जातिभेद, जातीय असमानता और अन्य कुरुतियाँ अपनी पूरी पैठ जमा चुकी थी जो मात्र मंदिर प्रवेश आंदोलन से खत्म होने वाली नहीं थी लेकिन इसके योगदान को नकारा भी नहीं जा सकता था ।

गुरुवायुर सत्याग्रह आंदोलन की कमी

इस आंदोलन ने छुआछूत के खिलाफ विरोध को उद्वेलित तो किया लेकिन इसने जाति प्रथा के खिलाफ आंदोलन नहीं छेड़ा । इसकी कमियाँ आजाद हिंदुस्तान में स्पष्ट दिखाई दी । देश में जातिवाद की जड़ें खासा मजबूत होती गई । guruvayur satyagraha

प्रश्न:-गुरुवायुर सत्याग्रह कब प्रारंभ हुआ था?

उत्तर:-गुरुवायुर सत्याग्रह 01 November 1931 ईस्वी में प्रारंभ हुआ था ।  

प्रश्न:-गुरुवायुर सत्याग्रह किसने छेड़ने के लिए उकसाया था?

उत्तर:-के कलप्पन ने ।

प्रश्न:- गुरुवायुर सत्याग्रह किसके द्वारा शुरू किया गया था?

उत्तर:-केरल कांग्रेस कमेटी द्वारा ।

प्रश्न:-16 स्वयंसेवकों का एक जत्था पीत सुब्रहण्यम तिरुमाबु के नेतृत्व में 21 October को कहाँ तक पैदल मार्च किया था?

उत्तर:-कन्नामूर से गुरुवायुर तक ।

प्रश्न:-गुरुवायुर सत्याग्रह क्यों छेड़ा गया था?

उत्तर:-यह आंदोलन दलितों और पिछड़ों को ‘गुरुवायुर मंदिर’ में प्रवेश का अधिकार दिलाना चाहता था ।

प्रश्न:-गुरुवायुर सत्याग्रह में किस वर्ग के लोग शामिल थे?

उत्तर:-पिछड़ी जाति, हरिजन, ऊंची जाति और नंबूदरी वर्ग के लोग शामिल थे ।

प्रश्न:-अखिल मंदिर प्रवेश दिवस कब मनाया गया था?

उत्तर:-पहली नवंबर 1931 ईस्वी को ।

प्रश्न:- गुरुवायुर सत्याग्रह में आमरण अनशन किसने रखा था?

उत्तर:- गुरुवायुर सत्याग्रह में आमरण अनशन के कलप्पन ने रखा था ।

प्रश्न:-के कलप्पन ने कब अपना अनशन तोड़ा था?

उत्तर:-02 अक्टूबर 1932 ईस्वी में

प्रश्न:- के कलप्पन किसके कहने पर अपना अनशन तोड़ा था? उत्तर:-महात्मा गांधी जी के कहने पर । guruvayur satyagraha

Important Gyan के इस सीरीज में मैं आप लोगों को ये बताने का प्रयास किया guruvayur satyagraha क्या था?। मित्रों मुझे अपनी लेखनी को यहीं पर समाप्त करने का इजाजत दीजिये। guruvayur satyagraha

अगर कहीं कोई त्रुटि रह गयी हो तो मानवीय भूल समझ  क्षमा  कर दीजियेगा और कोई सुझाव हो तो  जरूर दें हम अपने लेख में उचित स्थान देंगे और कोई प्रश्न हो तो जरूर पूछे।  guruvayur satyagraha

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