Lingaraj temple Bhubaneswar History in Hindi
नमस्कार साथियों!
इम्पॉर्टन्ट ज्ञान में आप सभी का स्वागत है । आज हमारे लेख का विषय है लिंगराज मंदिर का इतिहास । लिंगराज का मंदिर कहाँ पर स्थित है? इसको किसने बनाया था और इसकी क्या मुख्य विशेषताएं हैं । आज का यह लेख काफी ज्ञानपरक और Interesting होने वाला है। आप इस लेख को शुरू से अंत तक जरूर पढ़ें । Lingaraj temple Bhubaneswar History in Hindi
मंदिर का निर्माण
लिंगराज के मंदिर का निर्माण 11 वीं शताब्दी में सोमवंशी राजा ययाति केशरी ने किया था । इसी समय इन्होंने अपनी राजधानी को जाजपुर से भुवनेश्वर में स्थानांतरित किया था। यह मंदिर मुख्य रूप से 150 मीटर वर्गाकार है और कलश की ऊंचाई लगभग 40 मीटर है।
ओडिशा के मंदिर की विशेषता:–
नागर शैली का निखरा रूप हमें ओडिशा के मंदिरों में देखने को मिलता है । ओडिशा में मंदिरों के निर्माण का समय आठवीं शताब्दी से लेकर तेरहवीं शताब्दी के बीच में हुआ था। कुछ आज भी मंदिरों के शेष बचे रहने का मुख्य कारण ऑडिशा की भौगोलिक विशेषता का होना है । चूंकि यह पहाड़ियों से घिरा हुआ है अतः बाहरी आक्रमण से हमेशा सुरक्षित रहा है । Lingaraj temple Bhubaneswar History in Hindi
वैसे देखा जाए तो ओडिशा के मंदिर मुख्य रूप से भुवनेश्वर, पुरी और कोणार्क में स्थित है । इसका निर्माण आठवीं से तेरहवीं शताब्दी के बीच हुआ था । भुवनेश्वर के मंदिर में ‘जगमोहन मंडप’ है । जगमोहन मंडप मंदिर के सम्मुख चौकोर कक्ष को कहा जाता है। इसका शीर्ष भाग पिरामिडाकर होता है । यह स्थान श्रद्धालुओं के पूजा अर्चना के लिए होता है। गर्भगृह को ‘देउल’ कहा जाता है।
बड़े बड़े मंदिरों में जगमोहन के ठीक आगे एक या दो मंडप और बनाए जाते थे इसको मुख्य रूप से ‘नटमंदिर और ‘भोगमन्दिर’ कहा जाता है । Lingaraj temple Bhubaneswar History in Hindi
शैली के अनुसार ऑडिशा के मंदिर मुख्य रूप से तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं जैसे-
- रेखा देउल-इस श्रेणी के अंतर्गत शिखर हमेशा ऊंचा बनाया जाता है ।
- पीढ़ा देउल-इस श्रेणी के अंतर्गत शिखर हमेशा हमेशा क्षितिजाकर पीरामिड बनाया जाता था ।
- खाखर– इसका गर्भगृह दीर्घाकार आयतनुमा होता था ।
यहाँ के मंदिरों में स्तंभों का प्रयोग बहुत ही कम देखने को मिलता है । इसके स्थान पर लोहे के शहतीरों का प्रयोग किया गया मिलता है ।यह एक अद्भुत प्रयोग है । यहाँ के मंदिरों के भीतरी भागों में खजुराहो के मंदिर की तरह अलंकरण नहीं देखने को मिलता है ।
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लिंगराज का मंदिर कहाँ स्थित है?
यह मंदिर ओडिशा प्रांत की राजधानी भुवनेश्वर जिले में स्थित है। यह भुवनेश्वर का बहुत ही महत्वपूर्ण मंदिर है और यह मंदिर मुख्य रूप से त्रिभुवणेश्वर भगवान को समर्पित किया गया है ।यह मंदिर ओडिशा शैली का सबसे अच्छा उदाहरण प्रस्तुत करता है । इस मंदिर के कुछ हिस्से आज से चौदह सौ वर्ष से भी अधिक पुराना है । लेकिन सबसे ज्ञानपरक बात यह है की इस मंदिर का वर्तमान स्वरूप लगभग 12 वीं शताब्दी में बना है । इस मंदिर का उल्लेख लगभग देखा जाए तो छठवीं शताब्दी के लेखों में भी देखने को मिलता है । Lingaraj temple Bhubaneswar History in Hindi
इस मंदिर का निर्माण मुख्य रूप से दसवीं से ग्यारहवी शती के बीच हुआ था । यह मंदिर एक विशाल प्रांगण में है जो ऊंची दीवारों से घिरा हुआ है । इस मंदिर के पूर्वी दीवार के बीच में एक बड़ा प्रवेश द्वार बना है जिसके चारों ओर बहुत सारे छोटे छोटे मंदिर हैं । इसमें लिंगराज का मंदिर सबसे विशाल और सुंदर है । इसमें चार विशाल कक्ष है जैसे-जगमोहन, देउल,नटमंडप और भोगमंडप । और ये सब एक ही सीध में बनाया गया है। Lingaraj temple Bhubaneswar History in Hindi
इस मंदिर के गर्भगृह के ऊपर एक काफी ऊंचा शिखर बनाया गया है । यह मंदिर ओडिशा शैली के प्रौढ़ मंदिरों का सबसे बढ़िया उदाहरण प्रस्तुत करता है। ऑडिशा शैली के मंदिरों की भीतरी दीवार मुख्य रूप से सादी और अलंकरण रहित है । भुवनेश्वर में लगभग आठ हजार मंदिर मौजूद थे जिसमें से कुल वर्तमान में लगभग पाँच सौ ही है । इन सबमें लिंगराज मंदिर सर्वश्रेष्ट है । भुवनेश्वर में ही अनंतवासुदेव का मंदिर है । यहाँ मौजूद एक मात्र यह वैष्णव मंदिर है । पूर्वोत्तर भारत में भुवनेश्वर शैव संप्रदाय का केंद्र बना है।
पौराणिक मान्यताएं
साथियों! इस संसार में जिसका निर्माण होता है उसके पीछे एक कहानी होती है । वैसे ही इस मंदिर के बनने के पीछे एक पौराणिक मान्यता है। ‘लिट्ट’ और ‘वसा’ नाम के दो बहुत ही बिकराल राक्षस थे। इन दोनों राक्षसों का पार्वती माँ ने मार दिया। अब चूंकि युद्ध के बाद पार्वती माँ को प्यास लग गई। अब भोलेनाथ वहाँ पहुंचे और यहीं एक कूप का बनाया और इस कार्य को पूरा करने हेतु सभी नदियों का आहवाहन(बुलाया) किया। इसी के पास एक बिन्दुसागर सरोवर स्थित है । इसी सरोवर के पास लिंगराज का विशालकाय मंदिर है।
मंदिर की पूजा विधि
सबसे पहले आप विंदुसरोवर में स्नान करें और फिर क्षेत्रपती अनंत वासुदेव का दर्शन-पूजन किया जाता है। इसके बाद मंदिर में गणेश पूजा करके गोपालिनिदेवी और भोलेनाथ के वाहन नंदी की पूजा की जाती है इसके बाद ही आप लिंगराज का दर्शन पूजन किया जाता है ।
तो साथियों मैं अपनी लेखनी को यहीं विराम देता हूँ अगर लोगों के मन में कोई भी प्रश्न हो तो आप बेझिझक कमेन्ट सेक्शन के माध्यम से प्रश्न करें । धन्यवाद!
FAQ
प्रश्न:-ऑडिशा के मंदिर किस शैली में बने हैं?
उत्तर:-ऑडिशा के मंदिर नागर शैली में बने हैं ।
प्रश्न:-ऑडिशा के मंदिर किन स्थानों पर मौजूद हैं?
उत्तर:-ऑडिशा के मंदिर मुख्य रूप से भुवनेश्वर, पुरी और कोणार्क में स्थित हैं ।
प्रश्न:-जगमोहन मंडप किसे कहते हैं?
उत्तर:-भुवनेश्वर के मंदिर में ‘जगमोहन मंडप’ है । मंदिर के सम्मुख चौकोर कक्ष को जगमोहन मंडप कहा जाता है । यह श्रद्धालुओं के पूजा अर्चना के लिए होता है ।
प्रश्न:-नट मंदिर और भोग मंदिर क्या होते हैं?
उत्तर:-भुवनेश्वर के बड़े मंदिरों में जगमोहन के ठीक आगे एक या दो मंडप और बनाए जाते थे इसको ‘नटमंदिर और ‘भोगमन्दिर’ कहा जाता है ।
प्रश्न:-लिंगराज का मंदिर कहाँ स्थित है?
उत्तर:-लिंगराज का मंदिर ऑडिशा प्रांत की राजधानी भुवनेश्वर जिले में स्थित है।
प्रश्न:-लिंगराज का मंदिर किसको समर्पित है?
उत्तर:-लिंगराज का मंदिर त्रिभुवणेश्वर भगवान समर्पित है?
प्रश्न:-लिंगराज के मंदिर में चार विशाल कक्ष हैं उनका क्या नाम है?
उत्तर:-लिंगराज के मंदिर में चार विशाल कक्ष है जैसे-जगमोहन, देउल,नटमंडप और भोगमंडप ।
प्रश्न:-लिंगराज मंदिर को किसने बनवाया था?
उत्तर:-लिंगराज के मंदिर को ययाति केशरी ने बनवाया था लगभग 11वीं शताब्दी के बीच । यह शोम वंशी राजा थे ।