जैन धर्म की शिक्षा कुछ अनमोल ज्ञान Jain dharm ki shiksha in Hindi 2020-2021

जैन धर्म की शिक्षा कुछ अनमोल ज्ञान Jain dharm ki shiksha in Hindi 2020-2021

Jain dharm ki shiksha in Hindi

नमस्कार साथियों!

 इम्पोर्टेट ज्ञान के इस सीरीज में आप सभी का स्वागत है। इससे पहले के लेख में मैंने महावीर स्वामी के जीवन चरित्र के विषय में चर्चा किया था आज हम उनकी विशेष सिक्षाएँ क्या थीं उसके बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे।

जैन धर्म के संस्थापक कौन थे?

जैन धर्म के संस्थापक ऋषभदेव थे । इनको आदिनाथ भी कहा जाता है । लेकिन छठी शताब्दी ईस्वी पूर्व के आंदोलन के संस्थापक महावीर स्वामी थे । ऋषभदेव आदि संस्थापक थे । महावीर स्वामी 24 वें तीर्थंकर(धर्मगुरु) थे ।

तीर्थंकर का अर्थ

वह व्यक्ति जो भव सागर को पार कर ले और दूसरों को भवसागर पार करने में मदद करे वही तीर्थंकर है ।

जैन धर्म क्या है?

अपने कैवल्य की प्राप्ति के बाद स्वामी जी ने ५० वर्षों तक अपने मत का प्रचार किया और लगभग ५२७ ईसापूर्व में ७० वर्ष की उम्र में अपना शरीर त्याग दिया। इनका अपने पूर्व के प्रमुख तीर्थंकर पार्शवनाथ से दो बातों में वैचारिक मतभेद था।

पहला वैचारिक मतभेत था की जहाँ पार्ष्वनाथ ने चार ब्रतों के पालन की बात कही जैसे -सत्य, अहिंसा,अस्तेय और अपरिग्रह। वहीँ महावीर स्वामी ने अपना एक महत्वपूर्ण मत का अलग से विधान करके इसके पालन के लिए अनिवार्य कर दिया। इनका पांचवा ब्रत था-ब्रह्मचर्य। 

इनका दूसरा वैचारिक मतभेद यह था कि पार्श्वनाथ ने भिक्षुओं के लिए वस्त्र पहनने की बात कही तो महावीर स्वामी ने भिक्षुओं के लिए नग्न रहने का विधान किया। Jain dharm ki shiksha in Hindi

अब जैन धर्म में प्रमुख पांच महाब्रत बना-सत्य,अहिंसा,अस्तेय,अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य। लेकिन मित्रों यहाँ ध्यान देने की यह बात है की ये महावीर स्वामी द्वारा दिया गया पांचवा ब्रत भिक्षुओं के लिए था। Jain dharm ki shiksha in Hindi

लेकिन गृहस्थ जीवन में रहकर जो इन पांचों ब्रतों का पालन करता था तो उसको महाब्रत न कहकर अणुब्रत  कहते थे। और इस ब्रत का पालन करने वाले गृहस्थ को ‘श्रावक’ या ‘श्राविका’ कहते थे। Jain dharm ki shiksha in Hindi महावीर स्वामी ने सच्चे ब्राह्मण के लिए कहा है की “सच्चा ब्राह्मण वही है जो अग्नि में तपकर शुद्ध किये गए सोने के समान पाप मल से रहित और पवित्र है, वही सच्चा ब्राह्मण होता है।”

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प्रमुख पांच महाब्रत:-

A)अहिंसा:ये जैन धर्म का प्रमुख सिद्धांत है।जैन धर्म में अहिंसा पर सबसे ज्यादा बल दिया गया है।हर प्राणी को हिंसा छोड़कर अहिंसा के रास्ते पर चलना चाहिए।इसका शाब्दिक अर्थ है कि हमें समस्त जीव का सम्मान करना चाहिए और उनके प्रति करुणा और सेवाभाव रखना चाहिए।गांधी जी ने इसको अपना मूल मन्त्र ही बना लिया इस ब्रत को बहुत लोकप्रिय बनाया। 

इसको पालन करने के लिए कुछ नियम और विधान बनाये गए हैं जिससे व्यक्ति अहिंसा के ब्रत का अच्छे से पालन कर पाए. 

ईर्या समितिइसमें व्यक्ति  को सावधान और जागरूक होकर चलने के लिए कहा गया है जिससे रास्ते में रेंगने वाले कीड़े मकौड़े पैर के नीचे आकर मर न जाएँ। Jain dharm ki shiksha in Hindi

भाषा समितिहर व्यक्ति को सोच समझ कर और सयम के साथ बोलना चाहिए। व्यक्ति को अपने भाषा और बोलने के लहजे पर हमेशा सतर्क रहना चाहिए ताकि सामने वाले को किसी प्रकार का तकलीफ न हो। Jain dharm ki shiksha in Hindi

एषणा समिति:-हर व्यक्ति को सयम और सावधान हो कर भोजन करना चाहिए जिससे जीवों की हत्या न हो। 

आदान-निक्षेप समितिव्यक्ति जब कोई वस्तु उठाये या रखे तो ये सब काम सावधानी से करे जिससे कोई भी जीव को किसी प्रकार की हानि न हो। Jain dharm ki shiksha in Hindi

व्युत्सर्ग समितिजब व्यक्ति मलमूत्र या शौच क्रिया करता है तो ऐसे जगह करे जहाँ किसी भी जीव की हानि न हो। 

जैन धर्म के अनुसार जब आप इन ब्रतों का बहुत सावधानी से पालन करेंगे तो तभी जाकर अहिंसा जैसे महाब्रत का पालन कर पायेंग। 

B)सत्य:हर व्यक्ति को सत्य धर्म का पालन करना चाहिए। सत्य ब्रत का पालन करने के लिए जैन धर्म में कुछ विधान किया गया है, जैसे -सोच समझ कर बोले,गुस्सा आने पर शांत रहें,लालच आने पर मौन रहें,ज्यादा खुश होने और डर  होने पर भी झूठ न बोलें-अनुबिं भाषी,कोहं परिजानति,लोभम परिजानति, हासं परिजानति भयं परिजानति। Jain dharm ki shiksha in Hindi

C)अस्तेय:जैन धर्म में इसका अर्थ होता है चोरी नहीं करना। इसमें कुछ बातों का विधान बताया गया है जिसको सभी को ईमानदारी से पालन करना चाहिए। अनुमति लिए बिना किसी की वस्तु को नहीं लेना चाहिए,अनुमति लिए बिना किसी के घर में प्रवेश और निवास नहीं करें, बिना गुरु के आज्ञा के अन्न नहीं ग्रहण करें, किसी दूसरे के घर के रहते हैं तो बिना अनुमति लिए उसके किसी सामान को नहीं छुएं। 

D)अपरिग्रह:-इसमें इस बात का विधान किया गया है की व्यक्ति को अनावशयक धन को इकठ्ठा नहीं करना चाहिए।क्योंकि जितना ज्यादा हम धन इकठा करेंगे उतना ही ज्यादा मोह और आसक्ति का जन्म होता है और इससे हमारे अंदर तमाम तरह की बुराइयाँ प्रवेश करती हैं और हम अनैतिक कामों में लिप्त हो जाते हैं। 

E)ब्रह्मचर्य:-इसमें भिक्षुओं  के लिए कुछ विशेष प्रकार का विधान किया गया है जैसे भिक्षु को किसी स्त्री से बात नहीं करना चाहिए,किसी स्त्री को देखना नहीं चाहिए,और नहीं किसी स्त्री के साथ संसर्ग की बात मन में सोचना चाहिए,हमेशा अल्प और शुद्ध भोजन लेना चाहिए,और जिस घर में स्त्री अकेली हो उस घर में पर पुरुष को कभी नहीं जाना चाहिए। Jain dharm ki shiksha in Hindi

यहाँ पर एक बात समझना होगा की ज्यादा कठोर ब्रत का विधान भिक्षुओं के लिए है जिसे ‘महाब्रत’  की संज्ञा दिया गया है लेकिन गृहस्थों के लिए सरल और थोड़ा कम कठोर ब्रत की बात कही गयी है जिसको ‘अणुब्रत’ कहा जाता है।  आत्मवादियों और  नास्तिकों के बीच के मार्ग को ही ‘अनेकांतवाद’ या ‘स्यादवाद’ कहा जाता है।

इसका सीधा सा मतलब है की प्रत्येक वस्तु के अनेक धर्म यानि की पहलु होते है। लेकिन व्यक्ति का सिमित मस्तिक पूरी तरह से इस बात को स्वीकार नहीं कर पाता है। वह इसके कुछ ही धर्मों को जान पाता है। इस आशिंक ज्ञान को जैन धर्म में ‘नय’ कहा गया है। पूर्ण ज्ञान तो केवल केवलिन के लिए संभव है। Jain dharm ki shiksha in Hindi

अनेकांतवाद या स्यादवाद:-

इसको सप्तभंगिय भी कहा जाता है। इसका सीधा सा मतलब है ‘ज्ञान की सापेक्षता का सिद्धांत।’ हम किसी भी वस्तु को पूर्ण रूपेण नहीं तो स्वीकार कर सकते हैं और नहीं अस्वीकार कर सकते हैं। ये दोनों ही अधिकता होती है। जब भी हम कोई निर्णय लें तो उसके पहले हमें ‘शायद’ शब्द जरूर जोड़ लेना चाहिए जैसे-

शायद  यह वास्तु है /वस्तु नहीं है/वस्तु है और नहीं है/वस्तु  है भी और नहीं भी-व्यक्त नहीं किया जा सकता है /वस्तु है और व्यक्त नहीं किया जा सकता/नहीं है और व्यक्त नहीं किया जा सकता है/है और नहीं है -व्यक्त नहीं किया जा सकता है। 

वैसे देखा जाय तो वास्तविकता के बहुलता का सिद्धांत जैन धर्म में देखने को मिलता है। बुद्ध के तरह इन्होने भी वेदों की अपौरुषता को स्वीकार नहीं किये और सामाजिक रूढ़िवादिता और पाखंड का घोर विरोध किया। महावीर स्वामी मानते थे की हर किसी की आत्मा अलग अलग होती है एक सार्वभौम आत्मा नहीं हो कर सबकी आत्मा अलग अलग होती है। Jain dharm ki shiksha in Hindi

महावीर स्वामी का मानना था की समस्त विश्व जीव और अजीव दो वस्तुओं से मिलकर बना है। जीव का सम्बन्ध व्यक्ति की व्यक्तिगत आत्मा से है। आत्माएं उनके होती हैं। वहीँ अजीव का विभाजन पांच प्रकार से हुआ है-धर्म,अधर्म,आकाश,काल और पुदगल। 

पुदगल ही भौतिक तत्व है। इसको अलग अलग किया जा सकता है और इसी में जीवों का निवास होता है। इसका सबसे छोटा भाग ‘अणु’ कहलाता है। स्पर्श,रस, गन्ध, और वर्ण ये पुदगल के विशेष गुण होता है। और यह समस्त पदार्थो में दिखाई देता है। 

महावीर स्वामी जी कर्मवाद और पुनर्जन्म में भी विश्वाश करते थे। लेकिन इनका ईश्वर के अस्तित्व में इनका विश्वास नहीं था। इनके जीवन का परम लक्ष्य केवल्य यानि की मोक्ष की प्राप्ति था। ये कर्म को बंधन का कारण मानते थे। ये कर्म को शुक्ष्म रूप में मानते है जो मनुष्य के अंदर प्रवेश करता है और उस व्यक्ति को संसार की और खिंच के ले जाता है। व्यक्ति दिन कर्म में लिप्त रहकर संसार से हमेशा जुड़ा रहता है। Jain dharm ki shiksha in Hindi

क्रोध, लोभ, मोह, माया ये सब कुप्रबीतियाँ होती हैं जो व्यक्ति के अंदर अज्ञानता के कारण ही पनपती हैं और इसी अनुसार व्यक्ति कर्म करता जाता है और संसार के मायाजाल में फंसता जाता है। जब कर्म जीव की ओर आकर्षित होता जाता है तो जैन धर्म में इसको ‘आस्रव’ कहा जाता है।

और कर्म का जीव के साथ संयुक्त हो जाना ‘बंधन’ कहलाता है।  अब जब मनुष्य कर्म के बंधन में बंध जाता है तो उसको मोक्ष की प्राप्ति के लिए महावीर ने तीन साधनो का जिक्र किया है जिसके पालन से मनुष्य को मोक्ष मिल जायेगा। इसको जैन दर्शन में त्रिरत्न की संज्ञा दिया गया है।Jain dharm ki shiksha in Hindi

A)सम्यक दर्शन:-जैन तीर्थंकरों के उपदेशों और वचनो में दृढ विश्वाश ही सम्यक दर्शन है। 

B)सम्यक ज्ञान:-सत्य का वास्तविक ज्ञान ही सम्यक ज्ञान होता है। यह भी पांच प्रकार का होता है-मति/श्रुति/अलौलिक/मनः पर्याय/कैवल्य। 

मति-इन्द्रियों द्वारा प्राप्त ज्ञान। 

श्रुति-सुनकर ज्ञान प्राप्त करना। 

अलौलिक-दिव्य या अलौकिक ज्ञान।  

मनः पर्याय-दूसरे की मन की बात जान लेना। 

कैवल्य-सर्वोच्च ज्ञान। 

C)सम्यक चरित्र:-जो कुछ भी जाना जा चूका है और और सही रूप में मान लिया गया है उसको अपने जीवन में उतारकर कार्य रूप में लाना ही सम्यक चरित्र कहा जाता है। जो भिक्षुओ के लिए पांच महाब्रत और गृहस्थों के लिए अणुब्रत का विधान किया गया है। 

जब व्यक्ति इन त्रिरत्नों का पालन करता है तो कर्म का जिव की और बहाव रुक जाता है इसको जैन दर्शन में ‘सवर’ कहा जाता है। और जब  जीव में पहले से व्याप्त कर्म समाप्त हो जाता है तो इसी को जैन दर्शन में ‘निर्जरा’ कहा जाता है।

और जब जिव से कर्म बिलकुल समाप्त हो जाता है तो उसी को मोक्ष कहा जाता है।इसके लिए कठोर तप और कायक्लेश की बात महावीर स्वामी ने किया है।  जब पूर्ण रूप से कर्म समाप्त हो जाता है तो व्यक्ति को अनंत ज्ञान,अनंत दर्शन, अनंत वीर्य और अनंत सुख की प्राप्ति हो जाती है जिसको जैन ग्रन्थ में ‘अनंत चतुष्टय’ कहा गया है। जैन ग्रन्थ में शलाका पुरुष का अर्थ ‘महान’ या गणमान्य ‘ व्यक्ति होता है। Jain dharm ki shiksha in Hindi

जैन धर्म का प्रभाव

महावीर स्वामी ने जो जन-मानस को सन्देश दिया उसका उसका वैश्विक प्रभाव देखेने को मिलता है। इनके द्वारा दिया गया अहिंसा,सत्य ,अस्तेय,अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य का यदि ईमनदारी से पालन करने वाले व्यक्ति को सारे कष्टों से छुटकारा मिल जाता है और फिर उस व्यक्ति विशेष को परमानन्द की प्राप्ति होती है। इनका कहना था की सृष्टि के कण कण में जीवों का वास होता है। Jain dharm ki shiksha in Hindi

इनका विशेष बल पशु,जीवाणु,वनस्पति और बीजों के सुरक्षा के प्रति ज्यादा था।इन सिधान्तो का पालन करने से अपराध बहुत कम हो जायेगा। आज भी देखा जाय तो जैन लोग इसका पालन बड़े सुगमता से करते हैं।इन्होने अहिंसा और सदाचार का जो पाठ पढ़ाया उससे लोगों को एक सधी हुई जीवन जीने की कला मिली। इनका स्यादवाद सिद्धांत आपसी भेदभाव मिटाकर सामंतवादी विचारधारा अपनाने की एक दिशा मिली। 

अगर हम इन शिक्षाओं का पालन करें तो जीवन में प्रगति करते जायेंगे और दूसरों को भी सुख और शांति मिलेगी।आपसी भेदभाव और धार्मिक कलह दूर हो जाएगी और हर तरफ शांति,भातृत्व भावना,प्रेम और सहिष्णुता का वैचारिक प्रभाव् देखने को मिलेगा।

आप इन सिधान्तो का पालन करते हैं तो नहीं सिर्फ आप अपना विकास करेंगे बल्कि दूसरों के बारे में भी सोंच पाएंगे और आपके पास एक वैश्विक मस्तिक का विकास देखने को मिलेगा। जीवन का वास्तविक मूल्य समझ पाएंगे।  

हालाँकि देखा जाय तो जैन धर्म का बहुत ज्यादा प्रभाव भारत में नहीं पड़ा। यह कुछ ही क्षेत्रों तक सिमित रहा।बौद्ध धर्म का प्रभाव बहुत ज्यादा रहा। लेकिन जैन धर्म ने साहित्य और कला के क्षेत्र में काफी ज्यादा योगदान दिया। जैन साहित्य प्राकृत,अपभ्रंश,कन्नड़,तमिल,तेलगु आदि भाषाओँ में मिलता है। प्राकृत भाषा को इन्होने ज्यादा बिकसित किया इसका मुख्य उदहारण पूर्व मध्यकाल के महान विद्वान हेमचन्द्र हैं जिन्होंने काव्य,व्याकरण,ज्योतिष,छंद शास्त्र विषयों पर साहित्य लिखा। भाषा थी-प्राकृत और अपभ्रंश। 

दक्षिण भारत में भी कन्नड़ और तेलगु भाषा में भी इनके साहित्य देखने को मिलता है। और तमिल ग्रन्थ कुरल के कुछ अंश जैनियों ने रचे थे। वैसे देखा जाय तो प्रादेशिक भाषा के विकास में योगदान जैनियों का ही है। 

भारतीय कला और स्थापत्य के क्षेत्र में भी जैनियों ने अपना विशेष योगदान दिया था दिया था। इसमें हस्तलिखित ग्रन्थ और उसपर खींचे हुए चित्रकला के विकास को दर्शाता है। इसके अलावा मध्य भारत,ओडिशा,गुजरात,राजस्थान में देखे तो अनेकों जैन मंदिर और मुर्तिया देखने को मिलता है। Jain dharm ki shiksha in Hindi खजुराहो में पार्श्वनाथ का मंदिर,राजस्थान के आबू पर्वत पर बना जैन मंदिर भारतीय कला का एक अनुपम उदहरण प्रस्तुत करता है।

संघ की स्थापना

जैन धर्म में संघ के लिए ११ गणधर रखे गए थे। शुरू में ये लोग महावीर स्वामी के विरूद्ध थे। वैसे देखा जाय तो एक को छोड़कर सभी लोग महावीर के काल में ही मर गए।

  • इंद्रभूति
  • वायुभूति
  • अग्निभूति
  • व्यप्त 
  • सुधर्मन
  • मण्डित 
  • मौर्यपुत्र 
  • अकम्पित 
  • अचलभ्राता
  • मेवार्य 
  • प्रभास

महावीर के मृत्यु के बाद सुधर्मन प्रमुख बने और २२ साल तक बने रहे। इनके बाद “जम्बू” प्रमुख बने। और बाद में 

  • स्यंभाव 
  • यशोभद्रा 
  • सम्भूत विजय 
  • भद्राबहु

प्रथम जैन संगीति :-

३०० ईस्वी पूर्व के लगभग जैन संगीति का आयोजन हुआ था। इसके अध्यक्ष स्थूलभद्र थे। इसका आयोजन पाटलिपुत्र में हुआ था। १४ पुब्बो(जैन किताबों) को जानने वाला अंतिम व्यक्ति भद्राबाहू थे। 

इस संगीति में भद्राबाहू के अनुपस्थति में १२ ग्रंथों का संकलन हुआ था लेकिन इसे भद्रबाहु ने अस्वीकार कर दिया। इस कारण यह धर्म दो भागों में बँट गया। १)दिगंबर २)स्वेताम्बर  मित्रों अब हम समझने की कोशिश करते हैं की जब जैन धर्म दो भागों में बंटा तो इन दोनों धर्मों में अंतर् क्या है?

दिगंबरस्वेताम्बर
ये कपड़ा नहीं पहनते थे । ये कपड़ा पहनते थे ।
महिलाओं को कैवल्य प्राप्त नहीं हो सकता था । कैवल्य प्राप्त हो सकता था ।
ज्ञान प्राप्ति के बाद खाना नहीं खाना चाहिए । खाना खाने में विश्वास करते थे ।
19 वें तीर्थंकर मल्लीनाथ पुरुष थे। इनके अनुसार महिला थे
दिगम्बर और स्वेताम्बर में क्या अंतर है?

द्वितीय जैन संगीति :-

स्थान-गुजरात(बल्लभी)

राजा-ध्रुवसेन -१ 

अध्यक्ष-देव रिधीगण(क्षमा श्रमण)

विशेष-इसमें छठवीं शताब्दी के ग्रन्थ संकलित हैं  आज तक श्वेताम्बर लोग मान्यता दे रहे हैं। 

क्रियाक्रमण का सिद्धांत 

महावीर स्वामी का मानना था की जो कार्य शुरू हुआ है उसे पूरा मान लिया जाय(बिना ख़त्म हुए) .लेकिन उनके जमाता और शिष्य जमाली इस मत को अस्वीकार कर दिए। 

बहुतरवाद सिद्धांत:- जमाली के अनुसार जब कार्य शुरू हुआ और जब तक वह पूरा समाप्त न हो जाय तब तक उसको हम पूरा नहीं मान सकते हैं। Jain dharm ki shiksha in Hindi

कुछ महत्वपूर्ण तथ्य

  • महावीर की भाषा प्राकृत है। 
  • दक्षिण की तमिल रचना “कुराल” जिसको तमिलों का लघुवेद कहा जाता है इसके रचनाकार तिरुवल्लुवर थे। 
  • छठी शताब्दी से बारहवीं शताब्दी तक जैन विद्वानों का आविर्भाव हुआ। 
  • सबसे प्रसिद्ध विद्वान हेमचन्द्र थे इनकी रचना थी “परिशिष्ट पर्वन” और ये मुख्य रूपसे ग्यारहवीं से बारहवीं शताब्दी के विद्वान थे। 
  • दूसरी शताब्दी के रचनाकार-रत्ननंदी थे जिनकी रचना भद्रबाहु चरित। 
  • भद्रा बाहू  की रचना थी-कल्पसूत्र और भद्रबाहु संहिता(खगोल शास्त्र पर आधारित थी)

जैन साहित्य:-

आगम(सिद्धांत) साहित्य– इसमें 12 अंगों का उल्लेख हुआ है । 

अचराङ्ग सूत्र-जैन भिक्षुओं का आचरण संबंधी नियम । 

उवासगसायनसू-उपासकों के आचार सूत्र। इसमें व्यापारियों का उल्लेख हुआ है । 

भगवती सूत्र-महावीर का जीवन चरित । इसमें समकालीन सोलह महाजनपदों का उल्लेख हुआ है । 

नायधमभकसूत्र-महावीर की शिक्षाएं । 

अनंतगगद साओसूत्र-कायाक्लेश द्वारा मोक्ष की प्राप्ति ।

जैन ग्रंथों की टीका

इसक निरयुक्ति या चूर्णी कहा जाता है । बारहवाँ अंग जिसको लेकर विवाद हुआ था उसे ‘दृष्टिकालिकसूत्र’ कहा जाता है । स्थूलभद्र और भद्रबाहु के बीच

विवागसुगमसूत्र-इसमें कर्मफल का विवेचन है। आपके जानकारी के लिए बता दें की जैन धर्म का अधिकतम साहित्य अपभ्रंश भाषा में है।

लेखक रचना
हरिभद्र सूरी धुरवाख्यान,कायाकोश,समरादित्यकथा
उद्योतन सूरी कुवलयमला
जिनेश्वर सूरी कायाकोशप्रकरन
जिनेसेन आदिपुराण
गुनभद्र उत्तरपुराण

आपके जानकारी के लिए बता दें की मथुरा का कंकाल टीला जैन धर्म से संबंधित है । यहाँ पर गुप्तकालीन मूर्तियों के साक्ष्य मिलता है ।

FAQs

जैन धर्म प्रश्न उत्तर हिंदी में

प्रश्न:-जैन दर्शन में शलाका पुरुष का क्या मतलब है?

उत्तर :-जैन ग्रन्थ में शलाका पुरुष का अर्थ ‘महान’ या गणमान्य ‘ व्यक्ति होता है।

प्रश्न:-जैन दर्शन में अनंत चतुष्टय क्या होता है?

उत्तर:- जब पूर्ण रूप से कर्म समाप्त हो जाता है तो व्यक्ति को अनंत ज्ञान,अनंत दर्शन, अनंत वीर्य और अनंत सुख की प्राप्ति हो जाती है जिसको जैन ग्रन्थ में ‘अनंत चतुष्टय’ कहा गया है।

प्रश्न:-अणुब्रत क्या होता है?

उत्तर:-गृहस्थों के लिए सरल और थोड़ा कम कठोर ब्रत की बात कही गयी है जिसको ‘अणुब्रत’ कहा जाता है।

प्रश्न:-स्यादवाद क्या होता है?

उत्तर:- इसको सप्तभागनिय भी कहा जाता है। इसका सीधा सा मतलब है ‘ज्ञान की सापेक्षता का सिद्धांत।’ हम किसी भी वस्तु को पूर्ण रूपेण नहीं तो स्वीकार कर सकते हैं और नहीं अस्वीकार कर सकते हैं। ये दोनों ही अधिकता होती है। जब भी हम कोई निर्णय लें तो उसके पहले हमें ‘शायद’ शब्द जरूर जोड़ लेना चाहिए। Jain dharm ki shiksha in Hindi

प्रश्न:-ईर्या समिति क्या होता है?

उत्तर:-इसमें व्यक्ति  को सावधान और जागरूक होकर चलने के लिए कहा गया है जिससे रास्ते में रेंगने वाले कीड़े मकौड़े पैर के नीचे आकर मर न जाएँ।

प्रश्न:-किसके अनुसार महावीर ने अपना प्रथम उपदेश पावा में दिया था?

उत्तर:-स्वेताम्बर लोगों के अनुसार

प्रश्न:-किस वर्ष और कहाँ पर महावीर की मृत्यु हुई थी?

उत्तर:-७२ वर्ष की आयु में पावा के मल्ल राजा सस्तिपाल के महल में हुई थी।

प्रश्न:-जैन दर्शन की प्रमुख शिक्षाएं कौन कौन सी है?

उत्तर:-

सत्य-हमें हमेशा सत्य बोलना चाहिए ।

अहिंसा- हमें किसी भी जीवित प्राणी को किसी भी प्रकार का चोट नहीं   पहुंचना चाहिए ।  

अस्तेय-हमें भूलकर भी चोरी नहीं करना चाहिए ।

त्याग-हम संपत्ति के मालिक नहीं है अतः मन से इसका त्याग करना चाहिए

ब्रह्मचर्य-हमेशा हमें सदाचारी जीवन व्यतीत करना चाहिए ।

प्रश्न:-जैन धर्म का प्रमुख ग्रंथ कौन सा है?

उत्तर:-आपको बता दें की जैन धर्म का सबसे प्रमुख ग्रंथ ‘समयसार’ है । यह ग्रंथ मुख्य रूप से आचार्य कुंदकुंद द्वारा लिखा गया है आज से लगभग 2000 वर्ष पहले । यह प्राकृत भाषा में है ।

प्रश्न:-जैन धर्म का वास्तविक संस्थापक कौन था? उत्तर:-जैन धर्म का वास्तविक संस्थापक ऋषभ देव थे । इन्हे आदिनाथ भी कहा जाता है । ये जैन धर्म के आदिसंस्थापक भी कहे जाते हैं । आपको बता दें की स्त्रियों के 64 कलाओं, पुरुषों की 72 कलाओं और 100 शिल्पियों का प्रादुर्भाव इन्ही के द्वारा हुआ है ।

प्रश्न:-जैन संगीति कहाँ हुई थी?

उत्तर:-प्रथम जैन संगीति का आयोजन पटलीपुत्र में हुआ था । द्वितीय जैन संगीति का आयोजन गुजरात(बलभी) में हुआ था।

प्रश्न:-महावीर स्वामी के कितने भाई थे?

उत्तर:-महावीर स्वामी के भाई ननदीवर्धन थे ।

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