इल्तुतमिश सम्राज्य का रक्षक, दिल्ली सल्तन का वास्तविक और वैधानिक सुल्तान Iltutmish in hindi

इल्तुतमिश सम्राज्य का रक्षक, दिल्ली सल्तन का वास्तविक और वैधानिक सुल्तान Iltutmish in hindi जानें कुछ अनमोल बातें

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नमस्कार साथियों!

Important Gyan के इस सीरीज में आप सभी का स्वागत है। आज हम इस लेख के माध्यम से जानेंगे की इल्तुतमिश कौन था। इल्तुतमिश के नाम का क्या अर्थ है । इल्तुतमिश के कितने पुत्र थे । इल्तुतमिश के पुत्र का क्या नाम था । इल्तुतमिश का उत्तराधिकारी कौन था । इल्तुतमिश का मकबरा किसने बनवाया । इल्तुतमिश की मृत्यु कब हुई थी । इल्तुतमिश प्रथम उत्तराधिकारी कौन था । इल्तुतमिश की कब्र कहाँ पर है । आप इस लेख को शुरू से लेकर अंत तक जरूर पढ़ें ।

इल्तुतमिश का क्या अर्थ है?

इल्तुतमिश नाम का अर्थ है साम्राज्य का रक्षक ।

इल्तुतमिश का पुरा नाम क्या था?

इल्तुतमिश पुरा नाम ‘सुल्तान शमसुदुनिया बउददीन अबुल मुजफ्फर अलतमश’ था ।

दिल्ली का पहला वैधानिक और वास्तविक सुल्तान इल्तुतमिश था।  इसने अपने पद की स्वीकृति खलीफा से प्राप्त किया था । इल्तुतमिश कानूनी तरीके से ही दिल्ली का प्रथम स्वतंत्र सुल्तान हुआ। इसने शमशी वंश की स्थापना किया था। Iltutmish in hindi

इल्तुतमिश का प्रारम्भिक जीवन

यह इलबारी तुर्क था। इसके पिता का नाम इलामखान था। अपनी योग्यता और सुंदरता के कारण यह अपने पिता का प्रिय पुत्र था।  इस लिए इसके भाई इससे जलते थे । इन्होंने इसको गुलामों के व्यापारियों को बेच दिया । Iltutmish in hindi

इसके बाद जमालउद्दीन मुहम्मद ने भी इसको बेचने के लिए गजनी ले गया । मोहम्मद गौरी इसको खरीदना चाहता था लेकिन जमालउद्दीन को मुहमाँगी रकम नही मिलने के कारण इल्तुतमिश को नहीं बेचा । इस बात से गोरी नाराज होकर गजनी में इल्तुतमिश को बेचने पर सख्त पाबंदी लगा दिया। Iltutmish in hindi

लेकिन इल्तुतमिश पर कुतुबउद्दीन एबक की नजर पड़ी अतः वो इसको खरीदना चाहा परंतु इल्तुतमिश को गजनी में खरीदा-बेचा नहीं जा सकता था अतः इसको भारत लाया गया ।

आपको बता दें की एबक ने इल्तुतमिश को 1197 ईस्वी में अनहिलवाड़ के युद्ध के पश्चात ही खरीदा था। एबक ने इल्तुतमिश को एक लाख जितल में खरीदा था। Iltutmish in hindi

इस तरह देखा जाए तो इल्तुतमिश को दो बार खरीदा बेचा गया । इसको एक गुलाम ने खरीदा था अतः गुलाम का गुलाम था । लेकिन ध्यान रहे की सुल्तान बनने से पहले ही यह दासता से मुक्त हो चुका था । Iltutmish in hindi

एबक ने इसको सबसे पहला पद दिया ‘सर ए जाँदार’ अर्थात अंगरक्षकों का प्रधान। इसके बाद यह अमीर ए शिकार के पद पर पहुँच गया। इसके बाद यह ग्वालियर का कीलेदार और बरन यानि की बुलंदशहर का इकतेदार बना । इसके बाद यह सबसे महत्वपूर्ण बदायूं का इकतेदार बना ।

सर-ए-जाँदार /अमीर ए शिकार /ग्वालियर का कीलेदार /बुलंदशहर का इकतेदार /बदायूं का इकतेदार

चूंकि आरामशाह को लाहौर के सरदारों का समर्थन प्राप्त था और इल्तुतमिश को दिल्ली के जनता का समर्थन प्राप्त था । लेकिन इलतूतमिश का पाशा भारी पड़ा और इसने जूद के युद्ध में आरामशाह को पराजित कर दिया । इस प्रकार इसके सुल्तान बनने के सभी संभावनाएं इसके समर्थन में उतर गई । Iltutmish in hindi

अब जब एबक की मृत्यु हो गई तो सिपहसालार अमीर अली इस्माइल ने दिल्ली के तुर्की सरदारों का समर्थन जुटाकर इल्तुतमिश को दिल्ली की राजगद्दी संभालने के लिए आमंत्रित किया ।

अब इल्तुतमिश के भाग्य के सितारे सातवें आसमान पर था । इल्तुतमिश दिल्ली आया और अपने को दिल्ली का सुल्तान घोषित कर दिया । सुल्तान को एक प्रतिष्ठित राज्य और राज्य को एक सितारा मिल गया । Iltutmish in hindi

इल्तुतमिश ने 1211 ईस्वी में आरामशाह को परास्त किया और उसका वध कर दिया । अब इल्तुतमिश के लिए सारे रास्ते साफ थे लेकिन इसके हिस्से में एबक बहुत छोटा राज्य छोड़कर गया था । उसको राज्य विस्तार का समय नहीं मिला था । Iltutmish in hindi

इधर इल्तुतमिश ने आरामशाह को परास्त करके अपना रास्ता साफ तो कर लिया लेकिन दिल्ली में एकत्रित हुए तुर्की सरदार इल्तुतमिश को सुल्तान मानने से इन्कार कर दिए और विद्रोह कर दिए । ये विद्रोह दिल्ली के बाहर ही हुआ था।  Iltutmish in hindi

इल्तुतमिश ने इन पर आक्रमण किया और जूद के मैदान में इन तुर्की सरदारों को बुरी तरह पराजित कर दिया । आपके जानकारी के लिए बता दें की इसमें दो तरह के सरदार थे एक तो कुतबी सरदार जो कुतुबद्दीन एबक के थे और दूसरा मुईज़्जी अर्थात मुहम्मद गोरी के सरदार । इन दोनों सरदारों के गुट को जूद के मैदान में परास्त किया । Iltutmish in hindi

इस समय तक दिल्ली सल्तनत का विस्तार पश्चिम में शिवालिक की पहाड़ियों से लेकर पूर्व में बनारस तक ही था । अर्थात एबक से इसको एक संकुचित राज्य ही मिला था ।

इल्तुतमिशके कितने पुत्र थे?

इल्तुतमिश के कुल चार संतान थी -रजिया सुलताना, रुकनूद्दीन फिरोज, मिज़्उद्दीन बहराम और नसीरुद्दीन महमूद ।

इल्तुतमिश की प्रमुख कठिनाइयाँ

अपने प्रमुख प्रतिद्वंदी आरामशाह और विद्रोही तुर्की सरदारों को बुरी तरह खत्म करने के बाद इसके सामने कुछ प्रबल समस्याएं सामने आईं । Iltutmish in hindi

  1. गजनी का शासक ताजुद्दीन यलदौज दिल्ली को अपने अधीन मानता था जैसा की एबक के समय भी परेशानी खड़ा किया था । लेकिन वैवाहिक संबंध में बंधने के बाद शांत हो गया था । अब चूंकि इल्तुतमिश के साथ इसका कोई विशेष प्रत्यक्ष संबंध नहीं होने के कारण शत्रुता बढ़ गई ।
  2. उधर उच्छ,सिंध और मुल्तान पर कब्जा जमाए नासिरुद्दीन कूबाचा लगातार अपने राज्य का विस्तार करते हुए लाहौर तक पहुँच गया।
  3. अब तक बंगाल और बिहार दिल्ली से पृथक हो गया था और लखनौती में अलीमर्दान ने विद्रोह का झण्डा खड़ा कर दिया था ।इसने बख्तियार खिलजी की हत्या कर दिया और यह स्वतंत्र शासक की तरह व्यवहार करने लगा ।
  4. हिन्दू राजपूत भी अपनी शक्तियों का विस्तार करते हुए भारत में तुर्क राज्य की अधीनता स्वीकार करने के पक्ष में नहीं थे । वे लोग जालौर, रणथंभौर और ग्वालियर में विद्रोह कर रहे थे ।
  5. इस समय इल्तुतमिश के सामने माँगोल आक्रमण का भय भी बराबर बना हुआ था ।
  6. अंतिम रूप से देखा जाए तो इल्तुतमिश के लिए दिल्ली का राज्य अस्थिर था एकदम फौजी जागीर की भांति जिसको व्यवस्थित किए बिना उसपर राज्य करना टेढ़ी खीर था ।

उपर्युक्त समस्याएं होते हुए भी इल्तुतमिश ने सूझ बुझ से काम लिया और एक एक करके सबको खत्म करता चला गया और राज्य विस्तार करता चला गया । इसने एक सफल सुल्तान होने का परिचय दिया । चलिए देखते हैं की इल्तुतमिश ने आखिर कौनसा रणकौशल अपनाया जिससे दिल्ली सल्तनत का एक संप्रभु सुल्तान बन पाया । Iltutmish in hindi

तुरकान-ए-चिहालगानी(चालीस गुलाम सरदार के गुट)

जूद के मैदान में इल्तुतमिश ने कुतबी और मुईज़्जी सरदारों को परास्त तो का दिया था लेकिन फिर भी उसको इन पर विश्वास नहीं रहा अतः वो खुद अपने लिए एक अलग तरह का गुट बनाना चाह रहा था । Iltutmish in hindi

इसके लिए इसने 40 अपने विश्वसनीय गुलाम सरदार एकठा किया जो पूर्ण रूपसे इसी पर निर्भर रहें और इनकी पूरी शक्ति भी इल्तुतमिश के पास ही रहे । ये सभी 40 गुलाम सरदार थे और इन्ही को तुरकान-ए-चिहालगानी कहा जाता था ।इनको इनके योग्यता के अनुसार पदक्रम प्रदान किया गया और शासन संचालन में इनसे सहयोग लिया गया । Iltutmish in hindi

अतः अब से इल्तुतमिश की कुतबी और मुईज़्जी सरदारों पर निर्भरता खत्म हो गई ।

आपको बता दें की तुरकान-ए-चिहालगानी का सबसे पहले उल्लेख फ़ुतूह-उस-सलातींन में हुआ है ।

ताजुद्दीन यलदौज को समाप्त किया

ताजुद्दीन यलदौज ने इल्तुतमिश को अपने अधीन मानते हुए एक छत्र, दंड और कुछ राजचीन्ह भेजा जिसे इल्तुतमिश ने बिना किसी अस्वीकृति के अपने पास उसे रख लिया । ताजुद्दीन यलदौज के कुछ विस्तारवादी नीति को भी उसने विरोध नहीं किया । Iltutmish in hindi

लेकिन मामला तब बिगड़ा, जब ताजुद्दीन यलदौज खवारिज्मशाह से परास्त होकर थानेश्वर तक के पंजाब प्रदेश तक आया और दिल्ली पर अपने अधिकार का दावा करने लगा।

इल्तुतमिश ने अपनी कमर कस लिया और ताजुद्दीन यलदौज को समाप्त करने की सोचा और 1215-16 ईस्वी में तराईंन के युद्ध में ताजुद्दीन यलदौज को परास्त करके कैद कर लिया । इसको बदायूं भेज दिया और इसी वर्ष इसकी मृत्यु हो गई । Iltutmish in hindi

आपके जानकारी के लिए बता दें की बदायूं कैद खाने के रूप में बहुत ज्यादा प्रयोग में लाया जाता था ।

इससे इल्तुतमिश को दो फायदे हुए एक तो इसका एक प्रबल शत्रु समाप्त होगया और दूसरा दिल्ली का गजनी से संबंध विच्छेद हो गया ।

नासिरुद्दीन कूबाचा की पराजय

कूबाचा मुख्य रूप से सिंध,उच्छ और मुल्तान के गवर्नर था । एबक की मृत्यु के बाद इसने पंजाब, भटिंडा,कुहराम और सिरसा और आरामशाह की मृत्यु के बाद लाहौर को भी जीत लिया ।

आपके जानकारी के लिए बता दें की जलालउद्दीन मांगवरनी के भारत आक्रमण से सबसे ज्यादा नुकसान और परेशानी उठानी पड़ी थी । 1217 में इल्तुतमिश ने कूबाचा पर आक्रमण कर उसके कुछ प्रदेशों पर अधिकार कर लिया और आत्मसमर्पण करने हेतु बाध्य किया लेकिन कूबाचा नही माना और सिंध नदी में कूदकर अपनी जान दे दिया । Iltutmish in hindi

आपके जानकारी के लिए बता दें की मिनहाज-उद्दीन-सिराज ने कूबाचा को बहुत ही बुद्धिमान, चतुर, अनुभवी और विवेकशील व्यक्ति कहा । कूबाचा ने मुल्तान का फिरोजी मदरसा बनाया था और जुजानी और उफी जैसे विद्वानों को सरंक्षण प्रदान किया था । Iltutmish in hindi

मँगोल संकट  

इल्तुतमिश के समय मँगोल संकट एक विकट समस्या थी । इस समय इनका महान नेता चंगेज खान ने अलाउद्दीन मुहम्मद खवारिज्मशाह का सम्पूर्ण राज्य रौंदता हुआ लगातार आगे बढ़ता चला आ रहा था । अब इनका पुत्र जलालउद्दीन मांगबर्नी भागकर भारत की ओर अपना मुख किया ।

जलालउद्दीन मांगबर्नी ने मंगोलों के विरुद्ध इल्तुतमिश से सहायता की मांग की लेकिन इल्तुतमिश ने वर्तमान समय को भांपते हुए और भारत पर इस सहायता के वजह से एक नया माँगोल संकट न पैदा हो जाये मांगबर्नी की सहायता करने से विनम्रता पूर्वक मना कर दिया । Iltutmish in hindi

इस तरह इल्तुतमिश ने दूरदर्शिता का परिचय दिया और भारत को मंगोलों संकट से उबारा । उस समय एक सुल्तान के लिए बडा ही गुणकारी बात थी ।

बंगाल विजय

एबक द्वारा नियुक्त अलीमरदान खान अब विद्रोही हो चुका था । उसके अत्याचार से बंगाल की जनता ने इसका वध कर दिया । जनता ने हुसामूददीन एवाज को गद्दी पर बैठाया।

हुसामूददीन एवाज ने गियासुद्दीन की उपाधि ली और राजकाज में व्यास हो गया । लेकिन ये भी दिल्ली सल्तनत का विद्रोही साबित हुआ जिसको इल्तुतमिश के पुत्र नसीरुद्दीन महमूद ने इसको एक युद्ध में परास्त कर दिया और इस तरह इसकी लीला समाप्त हो गई । लेकिन दुर्भाग्य से नसीरुद्दीन महमूद की भी मृत्यु हो गई । Iltutmish in hindi

लेकिन इधर इख्तियारूद्दीन बलका खिलजी ने विद्रोह कर दिया जिसको इलतूतमिश ने एक युद्ध में परास्त करके मार दिया । अब बंगाल पुनः दिल्ली के अधीन हो गया और इल्तुतमिश ने बिहार तथा बंगाल को पृथक पृथक कर दिया और यहाँ पर इकता स्थापित किया ।

हिन्दू राजपूतों से संघर्ष

इल्तुतमिश के समय में हिन्दू राजपूतों ने विद्रोह करके-

  • चंदेलों ने कालिंजर और अजयगढ को जीता,
  • प्रतिहारों ने ग्वालियर,नर्वर और झांसी पर अधिकार किया
  • चौहान गोविंदराय ने रणथंभौर पर अधिकार किया।

लेकिन इल्तुतमिश ने इनके शक्ति को कमजोर करने हेतु और दोआब के महत्ता को समझते हुए एक प्लैनिंग के तहत Iltutmish in hindi

  • 1226 ईस्वी में -रणथंभौर को जीता ।
  • 1228 ईस्वी में जालौर को जीता ।
  • 1230-31 ईस्वी में ग्वालियर का घेरा डाल दिया ।
  • 1233-34 ईस्वी में कालिंजर पर अधिकार ।
  • 1234-35 में भीलसा और उज्जैन को लूटा ।
  • 1236-बमियान(सिंध और गजनी के बीच)के शासक सैफुद्दीन हसन करलुग के विरुद्ध अभियान । लेकिन इल्तुतमिश की तबीयत खराब हो गई और वह लौट आया ।इसी समय दिल्ली में इसकी मृत्यु हो गई ।  

इस तरह देखा जाए तो इल्तुतमिश का राजपूत अभियान सफल ही था लेकिन ये दो राजपूतों से पराजित हुआ-

  1. नागदा के गहलोतों से
  2. गुजरात के चालूकयों से

आपके जानकारी के लिए बता दें की दिल्ली सल्तनत का एक ऐसा सुल्तान था जिसने दोआब के आर्थिक महत्व को समझा।

साथियों आपके जानकारी के लिए बता दें की एक प्रश्न और बनता है की पिरथु या वरतू का विद्रोह कहाँ और किसके समय में हुआ था । यह विद्रोह अवध में ही इल्तुतमिश के समय में हुआ था । इसका पुत्र नसीरुद्दीन महमूद कहता है की इस विद्रोह में 1.20 लाख मुसलमान मारे गए ।

इल्तुतमिश की प्रमुख उपाधियाँ क्या थीं?

इलतूतमिश की प्रमुख उपाधियाँ जो उसने सुल्तान के काल में धारण किया था

आपके जानकारी के लिए बता दें की इलतूतमिश को दासत्व से मुक्ति 1205-06 ईस्वी एक बीच में मिली थी ।

बगदाद के खलीफा अल मुस्तानसीर बिलाह ने इलतूतमिश को सुल्तान की मान्यता प्रदान किया लगभग 1299 ईस्वी में । खलीफा ने यह कार्य मौलाना रफीउददीन न हसन संगामी और काजीलाल उरुष को सौंपा था ।

खलीफा ने इलतूतमिश को नासिर-अमीर-उल-मोमिनीन यानि की खलीफा का सहायक या मुसलमानों का प्रधान की उपाधि प्रदान किया । इसके सिक्कों पर मोमिनीन और अल-मुस्तानसीर-बिलाह उत्कीर्ण मिलता है ।

इल्तुतमिश की न्याय व्यवस्था कैसी थी?

इब्नबतुता का कहना की- राजमहल के सामने संगमरमर की दो शेर की प्रतिमा, जिनके मुख में लगी जंजीर को खींच कर न्याय की मांग की जाती है रात में ।

इल्तुतमिश से न्याय के लिए दिन में कौनसा वस्त्र पहना जाता था?

दिन में न्याय के लिए लाल वस्त्र पहनकर जाना पड़ता था । इसने न्याय के लिए काजी और अमीरदाद की नयुक्ति की थी ।

 इल्तुतमिश की सैन्य व्यवस्था

हशम-ए- कल्ब =>केन्द्रीय सेना

हशम-ए-अतरफ=>प्रांतीय सेना

सवार-ए-कल्ब=>घुड़सवार सेना

कल्ब-ए-सुलतानी =>सुल्तान की सेना

ईरानी(फारसी) राजतन्त्र के सिद्धांत का प्रतिपादन किसने किया था?

इल्तुतमिश ने ईरानी(फारसी) राजतन्त्र के सिद्धांत का प्रतिपादन किया था। अदाबू सलातींन और मासिरु सलातींन इनको अपने बच्चों की शिक्षा हेतु मंगाया था ।

इक्तादारी प्रणाली की शुरुवात किसने किया था?

आपके जानकारी के लिए बता दें की इल्तुतमिश ने ही इक्तादारी प्रणाली का प्रचलन किया था । सैनिक अधिकारी को वेतन के बदले भू-राजस्व प्रदान करना ही इक्तादारी प्रणाली कहलाता था ।

बड़े इक्तेदारों को क्या कहा जाता था?

इनको मुक्ता या बलि कहा जाता था । ये लोग अपने क्षेत्र में न्याय प्रसाशन भी देखते थे । इक्तेदारों का स्थानांतरण भी होता था ।लेकिनइल्तुतमिश के बाद ये इक्तेदारस्थायी हो गए। अर्थात वंशानुगत हो गए ।

इल्तुतमिश की मुद्रा प्रणाली

इलतूतमिश द्वारा चलाए गए प्रमुख मुद्रा

इसने शुद्ध अरबी के सिक्के चलाए। इसने चांदी का टँका(175 ग्रेन) और तांबे का जितल(32 रत्ती) का चलाया था ।

एक टँका=48 जीतल उत्तर भारत में

एक टँका=50 जीतल दक्षिण भारत में दक्षिण में तांबे का बड़े पैमाने पर आयात होता था ।

इल्तुतमिश के शिक्षा संबंधी सुधार

इसने दो मदरसों का निर्माण किया था। एक दिल्ली में और दूसरा बदायूं में। इनको मदरसा-ए-मुईज़्जी कहा जाता था और इनका निर्माण इसने मुहम्मद गोरी की स्मृति में किया था ।

इल्तुतमिश ने मिनहाज-उस-सिराज को सद्र-ए-जहां ग्वालियर नियुक्त किया था

इल्तुतमिश की मृत्यु कब हुई?

1236 ईस्वी में जब इल्तुतमिश का अंतिम विजय अभियान बमियान के खिलाफ खत्म हुआ तो यह विमार हो गया और जब यह दिल्ली आया तो यहीं पर इसकी मृत्यु हो गई । इसने अपनी पुत्री को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया था ग्वालियर अभियान से लौटने के बाद । Iltutmish in hindi

इल्तुतमिश का निर्माण कार्य

भारत के इतिहास का पहला मकबरा दिल्ली में अपने पुत्र नसीरुद्दीन महमूद के स्मृति में बनाया था। यह सुल्तान गढ़ी का मकबरा नाम से प्रसिद्ध था।  1231 ईस्वी में।  यह दिल्ली में मलकपुर नामक स्थान पर । यह अठपहला है ।  Iltutmish in hindi

इल्तुतमिश ने कुतुबमीनार के निर्माण कार्य को पुरा किया । यह चार मंजिला है । (दोपहर की नमाज की अजान देने के लिए)

आपको बता दें की फिरोज तुगलक के शासन काल में चौथे मजीले पर बिजली गिर गई । इस पर फिरोज तुगलक ने छोटी दो मंजिलों का निर्माण कर दिया जिससे यह छः मंजिला हो गया ।

अलावा बदायूं में हौज-ए-शमशी, शमशी ईदगाह और जामे मस्जिद का निर्माण किया। Iltutmish in hindi

इल्तुतमिश ने अतार्किन के दरवाजे का भी निर्माण किया था ।नागौर(जोधपुर, राजस्थान) में सूफी संत हमीमुद्दीन नागौरी थे जिनकी उपाधि थी “सुल्तान तारीकिन”(सन्यासियों का सुल्तान) । इन्हीं की स्मृति में यह दरवाजा बनाया था इलतूतमिश ने ।

इल्तुतमिश की पत्नी का नाम क्या था?

इसकी पत्नी शाहतुर्कान एक निम्न कुल की कन्या थी । यह महिला विद्वानों, सैयदों और धर्मात्माओं को मुक्त हस्त से दान करती थी । रुकनूद्दीन फिरोज इसी का लड़का था ।

इल्तुतमिश का मकबरा कहाँ है?

इल्तुतमिश का मकबरा दिल्ली में है ।

दिल्ली सल्तनत का वास्तविक संस्थापक एबक था, लेकिन इलतूतमिश गुलाम वंश के शासकों में महान जरूर था-बुलजले हेग ।

दिल्ली सल्तनत की संप्रभुता की शुरुवात उसी से होती है और दिल्ली सल्तनत का वास्तविक इतिहास उसी से प्रारंभ होता है- आर पी त्रिपाठी ।

प्रश्न:-दिल्ली का वह प्रथम सुल्तान जिसने सुल्तान पद की स्वीकृति किसी गोर के शासक से न लेकर खलीफा से प्राप्त किया था?

उत्तर:- दिल्ली का वह प्रथम सुल्तान इल्तुतमिश था जिसने सुल्तान पद की स्वीकृति किसी गोर के शासक से न लेकर खलीफा से प्राप्त किया था

प्रश्न:- दिल्ली का वह प्रथम सुल्तान कौन था जिसने टँके पर उस शहर का नाम खुदवाना प्रारंभ किया जिस शहर में वह ढाला जाता था?

उत्तर:- दिल्ली का वह प्रथम सुल्तान इल्तुतमिश था जिसने टँके पर उस शहर का नाम खुदवाना प्रारंभ किया जिस शहर में वह ढाला जाता था?

प्रश्न:- इल्तुतमिश ने दो मदरसों का निर्माण कहाँ करवाया?

उत्तर:- इल्तुतमिश ने दो मदरसों का निर्माण एक दिल्ली में और दूसरा बदायूं में ।

प्रश्न:-इकता प्रथा क्या था?

उत्तर:-नकद वेतन के बदले किसी खास भू-भाग का राजस्व अधिन्यास

प्रश्न:- इल्तुतमिश ने ‘रावत-ए-अर्ज’ की उपाधि किसको दिया था?

उत्तर:- इल्तुतमिश ने ‘रावत-ए-अर्ज’ की उपाधि इमाद-उल-मुल्क को दिया था

प्रश्न:-किसने कहा था की ‘दिल्ली सल्तनत का वास्तविक संस्थापक इल्तुतमिश था?

उत्तर:- ईश्वरी प्रसाद ने कहा था की ‘दिल्ली सल्तनत का वास्तविक संस्थापक इल्तुतमिश था

प्रश्न:- इल्तुतमिश ने किसको पराजित करके बंगाल को दिल्ली सल्तनत का भाग बना लिया था?

उत्तर:- इल्तुतमिश ने बल्काखिलजी को पराजित करके बंगाल को दिल्ली सल्तनत का भाग बना लिया था?

प्रश्न:-किस सुल्तान का सिद्धांत था की भारत अरब नहीं है इसको दारुल इस्लाम में परिवर्तित करना है?

उत्तर:- यह सुल्तान इल्तुतमिश का सिद्धांत था की भारत अरब नहीं है इसको दारुल इस्लाम में परिवर्तित करना है?

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मित्रों मुझे अपनी लेखनी को यहीं पर समाप्त करने का इजाजत दीजिये।अगर कहीं कोई त्रुटि रह गयी हो तो मानवीय भूल समझ कर क्षमा कर दीजियेगा और कोई सुझाव हो तो जरूर दें हम अपने लेख में उचित स्थान देंगे और कोई प्रश्न हो तो जरूर पूछे। Iltutmish in hindi

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