Baudh dharm ke Siddhant Very important

Baudh dharm ke Siddhant

Baudh dharm ke Siddhant

नमस्कार साथियों 

इम्पॉर्टन्टज्ञान के इस सीरीज में आप सभी का स्वागत है। पछले लेख में हमने पढ़ा था महात्मा बुद्ध के विषय में आज हम चर्चा करेंगे बौद्ध धर्म के सिद्धांत के बारे में। जब महात्मा बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ तो उन्होंने संसार को क्या ज्ञान दिया और वो इतने विस्तृत रूपसे कैसे सफल हुए और उनके धर्म का विस्तार कैसे हुआ? Baudh dharm ke Siddhant 

इनके उदेश और शिक्षाये मित्रों एकदम सहज और प्रकृति के अनुरूप था। दिल को छू जाता था। इन्होने जो उपदेश दिया उसको बलात रूप से लोगों पर नहीं थोपा। लोगों के इच्छा के ऊपर था। आप ज्ञान लीजिये और समझ में आये तो अनुयाई बनिए। ज्ञान के बाद बुद्ध में सम्पूर्ण शांति आ चुकी थी और सबके प्रश्नो का उत्तर वो बहुत ही सहज और नेचरल तरीके से देते थे।

एक बार जो भी इनसे मिलता था बिना प्रभावित हुए नहीं रह पाता था। इन्होने अपना पहला उपदेश सारनाथ में पांच ब्राह्मणों को दिया था जिसको मुख्य रूप से धर्मचक्रप्रवर्तन कहा जाता है। इस उपदेश का सीधा सम्बन्ध दुःख,दुःख के कारण और उसके समाधान से सम्बंधित था। इसको चार आर्य सत्य के नाम से जाना जाता है। Baudh dharm ke Siddhant 

दुःख:-सम्पूर्ण संसार में दुःख का भंडार है। और पूरा जीवन दुःख और कष्ट से भरा पड़ा है। कुछ पाने की इच्छा और पाए हुए को खोने का डर इन्ही विन्दुओ में जीवन का सफर टिका हुआ है। मन में हर चीज के प्रति आसक्ति और मिलने और ना मिलने पर दुःख। और इसके आलावा गरीबी,रोग,जरा और मृत्यु इस तरह के कष्ट आदमी को पूरी तरह से अंदर से तोड़ दे रहा है। मन की गति पर जरा भी प्रतिबन्ध नहीं है। ये सब ही दुःख का कारण है।इस पर हिन्दू दर्शन,जैन दर्शन,और बौद्ध दर्शन सभी एकमत है।  

दुःख समुदाय:-जितनी भी वस्तुएं जीवन में हैं उसका कोई न कोई कारण जरूर होता है। और किसी न किसी कारण से दुःख की उत्पत्ति होती है। बिना कारण किसी भी वस्तु का अस्तित्व नहीं होता है। इसलिए हर वस्तु की उत्पत्ति किसी न किसी कारण से ही होती है। और प्रतीत्य समुत्पाद से ज्ञात होता है की दुःख का मूल कारण अविद्या और अज्ञान होता है। संसार में जितने भी दुःख है उसका सामूहिक नाम जरा मरण‘ है। और जरा मरण से लेकर अविद्या तक में कुल १२ कड़ी है।  Baudh dharm ke Siddhant 

दुःख निरोध:-संसार के हर दुःख को रोका जा सकता है। हर वस्तु के उत्पति का कोई न कोई कारण होता है। अगर कारण को ख़त्म कर दिया जाय तो वस्तु का भी विनाश हो जाता है। अगर हम अविद्या और अज्ञानता को ख़त्म कर दे तो दुःख का विनाश हो जायेगा। दुःख निरोध को निर्वाण कहा गया है और निर्वाण का मतलब दुःख का विनाश है न कि शरीर का विनाश। इससे व्यक्ति का पुनर्जन्म रुक जाता है और दुखों का अंत भी हो जाता है। इसको वर्णातीत बोला गया है।Baudh dharm ke Siddhant 

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दुःख निरोध गामिनी प्रतिपदा:-दुःख का मूल अविद्या या अज्ञानता होता है।इसका विनाश करने के लिए महात्मा  बुद्ध ने एक अष्टांगिक मार्ग बतलाया है। ये अष्टांगिक मार्ग का अनुसरण करने से दुखों को नाश किया जा सकता है। 

सम्यक दृष्टि:-किसी भी वस्तु का वास्तविक ज्ञान या ध्यान ही सम्यक दृष्टि कह लाता है। इसमें चार आर्य सत्यों की जानकारी होनी चाहिए। 

सम्यक संकल्प:-हर तरह के विकार से मुक्त रहना जैसे-राग,द्वेष,हिंसा, आसक्ति। इन सबसे जो दूर रहता है उसे ही सम्यक संकल्प कहा जाता है। 

सम्यक वाक:अप्रिय वचनों को त्याग कर सदैव सही और सत्य बोलना ही सम्यक वाक कह लाता है। 

सम्यक कर्मान्त:- सदैव अच्छे अच्छे और भलाई का काम करना ही सम्यक कर्मान्त कह लाता है। 

सम्यक आजीव:-व्यक्ति को सदैव अच्छे आचरण करना चाहिए और सदाचार के नियमों  का पालन करना चाहिए। 

सम्यक व्यायाम:-व्यक्ति को सदैव मानसिक,नैतिक और आध्यात्मिक विकास और उन्नति के लिए प्रयासरत रहना चाहिए और इसका नियमित अभ्यास करना चाहिए। 

सम्यक स्मृति:-व्यक्ति को हमेशा अच्छी और सकारात्मक विचारों को स्मरण करना चाहिए जिससे उसके विचार सबल और पवित्र बन सके। 

सम्यक समाधि:-मन और चित को हमेशा एकाग्र और शांत रख कर जीवन यापन करना चाहिए।

नोट:-सम्बोधि के दौरान बुद्ध को प्रतीत्य समुत्पाद के सिद्धांत का बोध हुआ।यह बुद्ध के उपदेशों का सार है। इसको कार्य कारण का सिद्धांत भी कहा जाता है। प्रतीत्य का अर्थ-किसी वस्तु के होने पर, समुत्पाद-किसी अन्य वस्तु की उत्पत्ति। इसको कार्य कारण सिद्धांत और क्षणभंगवाद भी कहा गया है। अर्थात नित्य या शाश्वत नहीं है।Baudh dharm ke Siddhant

इसका मतलब होता है की सभी दृश्यवान वस्तुए वास्तविकता और शून्यता के बीच में खड़ी है-माध्यमिक दर्शन जो अरस्तु के गोल्डन मीन की तरह है।न ही पूर्ण सत्य और न ही पूर्ण असत्य।Baudh dharm ke Siddhant 

न ही पूर्ण सत्य है का मतलब है की सब कुछ जरमरण के अधीन हैं और न ही पूर्ण असत्य इसलिए होता है क्योंकि इसका अस्तित्व विद्यमान है और हमें दिखाई देता है। Baudh dharm ke Siddhant 

प्रतीत्य समुत्पाद बुद्ध के द्वितीय और तृतीय आर्य सत्य में सम्मिलित है जिसमें उन्होंने दुःख का कारण और उसके निरोध के लिए बताया है। Baudh dharm ke Siddhant 

बुद्ध ने मध्यम मार्ग  अर्थात मध्यमा प्रतिपद पर जोर देते हुए कहा है की हमें अतिशय अर्थात अधिकता से बचना चाहिए और जीवन के हर क्षेत्र में मध्यम मार्ग को अपनाना चाहिए हमें संतुलन रखना चाहिए।इनका सिद्धांत अरस्तु के Golden Mean के समान था। यही जीवन का एक मूलमंत्र होता है। इसलिए बुद्ध ने दो अतिवादी विचार धाराओं को कभी मान्यता नहीं दी जैसे –शाश्वतवाद और उच्छेदवाद। 

बुद्ध ने वेदों की अपौरुषेयता और आत्मा की अमरता के के विचार को मान्यता नहीं दी लेकिन ये पुनर्जन्म और कर्म के सिद्धांत को जरूर मानते थ। बुद्ध ने ज्ञान के अपेक्षा शील(नैतिकता) को ज्यादा तरजीह दिया है। और सामान्य जन के लिए उपासक धर्म की शिक्षा दी जो भिक्षु धर्म से भिन्न था। इसका विवरण मुख्य रूप से दीघनिकाय के सिंगलवाद सूत में मिलता है। बुद्धघोस ने इसको ‘गिहिविनय’ की संज्ञा दिए हैं अर्थात ‘गृहस्थों के लिए आचरण’ की संज्ञा दिए हैं।Baudh dharm ke Siddhant 

बुद्ध ने यज्ञीय कर्मकांडों और पशु बलि जैसी कुप्रथाओं का बड़े पैमाने पर विरोध किया है। इसके अलावा ये वैदिक अनुष्ठानों,कर्मकांडों और पशुबलि का जमकर विरोध किया है।ये जातिवाद को भी नहीं मानते थे। व्यक्ति की पहचान जन्म के  आधार पर नहीं बल्कि व्यक्ति के गुण और चरित्र के आधार पर होना चाहिए।Baudh dharm ke Siddhant 

इस प्रकार देखा जाय तो बुद्ध अतिशय आसक्ति और अतिशय कायाक्लेश दोनों से बचने के लिए बुद्ध ने उपदेश  दिया है। बुद्ध कहते हैं की जो प्रतीत्य समुत्पाद को जनता है वो धम्म को जानता है और जो धम्म को जनता है वो प्रतीत्य समुत्पाद को जनता है। ये माध्यम मार्ग को वरीयता देते थे, आत्मा की अमरता को स्वीकार नहीं करते थे ,पुनर्जन्म और कर्म के सिद्धांत को मानते थे।वैदिक अनुष्ठान,कर्मकांड,पशुबलि का घोर विरोध करते थे। Baudh dharm ke Siddhant 

हालाँकि ये संसार त्याग को भी सही नहीं मानते थे। वाहय आडम्बर,चमत्कार,जादू टोना,अन्धविश्वास से दूर रहने के लिए बोलते थे। वास्तविक जीवन और सदा जीवन पर विश्वाश करते थे और अपनी इच्छाओं को वश में रखने के लिए बोलते थे। 

अब मुझे मेरी लेखनी को यहीं विराम देने के लिए अनुमति दीजिए। मैंने इस लेख में आपको यह बताने का प्रयास किया की बौद्ध धर्म क्या है और महत्मा बुद्ध ने क्या क्या उपदेश दिया है। अगर कही कोई त्रुटि रह गयी हो तो इसके लिए क्षमा चाहता हूँ और और कोई सुझाव हो तो उसको भी अपने लेखनी में सम्मिलित करेंगे। धन्यवाद !

आपका दिन शुभ हो!

FAQ 

प्रश्न:-बुध्द के अस्थियों को किन लोगों ने लिया? 

उत्तर:-बुद्ध के अश्थियों को ८ लोगों ने लिया-मगध के राजा आजाद शत्रु,वैशाली के लिक्षवी, कपिल वास्तु के शाक्य,अलकप्प के बुलिय,राम गाम के कोलिय,वेठद्वित्प के ब्राह्मण,पावा के मल्ल ,पिप्लीवन के मोलिय।

प्रश्न:-बुद्ध के चार आर्य सत्य क्या था? 

उत्तर :-बुद्ध के चार आर्य सत्य थे-दुःख, दुःख समुदाय ,दुःख निरोध,दुःख निरोध गामिनी प्रतिपदा। इनको “चातारी आरियसच्चानि” कहा जाता है। 

प्रश्न:-सम्यक समाधी क्या है?

उत्तर:-मन और चित को हमेशा एकाग्र और शांत रख कर जीवन यापन करना चाहिए और अपनी सोंच को हमेशा ठीक रखना चाहिए। प्रश्न:-प्रतीत्य समुत्पाद क्या है?

उत्तर:-यह बुद्ध के उपदेशों का सार है? इसका मतलब है की इसके होने से यह उत्पन्न होता है।

प्रश्न:-उपासक धर्म क्या है? 

उत्तर:-सामान्य जन के लिए बुद्ध ने जो जिस धर्म का उपदेश दिया वह भिक्षु धर्म से भिन्न था इसी को उपासक धर्म कहा गया है।

प्रश्न:-उपासक धर्म को ‘गिहिविनय” की संज्ञा किसने दिया है?

उत्तर :-बुद्धघोष ने उपासक धर्म को गिहिविनय” की संज्ञा दिया है। 

प्रश्न:-बौद्ध धर्म में त्रिरत्न क्या है?

उत्तर :-बौद्ध धर्म मेंत्रिरत्न है-बुद्धं शरणम गक्षामि,धम्मं शरणम गच्छामि,संघम शरणम गच्छामि। 

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